सभी दोस्तों को मेरा हार्दिक प्रणाम।
मैं अपनी प्रथम सच्ची कहानी को आपके सामने प्रस्तुत करते हुए बड़ी प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।
साथियों मेरा नाम सुमित सिंह है, मेरी उम्र उन्नीस साल है। मैं बागपत (उ.प्र.) का रहने वाला हूँ और स्नातक की पढ़ाई कर रहा हूँ। लम्बी दूरी का एथलीट होने के कारण मेरा शरीर पतला, कद लम्बा किन्तु मजबूत है। मैं हर सप्ताह तकरीबन सौ किलोमीटर की दौड़ करता हूँ।


शायद यही आदत मेरे लिए वरदान भी बन गई है और अभिशाप भी, अभिशाप इसलिए कि इस कारण मैं और जगह जैसे लड़की पटाने, चुदाई करने आदि में अधिक समय नहीं लगा पाता हूँ और वरदान इसलिए कि अगर कोई लड़की मुझसे चुदेगी तो लम्बे समय तक परम ऐश्वर्य, सुख का आनन्द प्राप्त करेगी।
इस साईट को पढ़ने वाली हसीन मादाओ, मेरी कहानी आप सभी को अपनी बुर में उंगली डालने को अवश्य मजबूर कर देगी।
यह पिछले साल की बात है, मैं और मेरे मामा का लड़का जिसका नाम राजेश है, ने एक बार कहीं घूमने की योजना बनाई और पहाड़ों के हसीन नजारों को देखने का निर्णय लिया।
उस समय उसकी दो गर्लफ्रैंड थीं और मेरी कोई नहीं।
हम दोपहर वाली ट्रेन से रुड़की पहुँचे जहाँ मेरे चाचा एक कम्पनी में कार्यरत थे। चूंकि मुझे उनके निवास स्थान का पता नहीं था, इसलिए हमने उनसे फोन पर सम्पर्क किया और एक रिक्शा वाले की बात उनसे करवाई और रिक्शा में बैठ गए।
रिक्शा में बैठे हुए हम मजे से बातें कर रहे थे। वहाँ सड़कों पर अनेक सुन्दर बालाएँ घूम रही थीं। उनके जीन्स और टॉप पर नजरें रहने से हमारे लण्ड खड़े होने लगे थे।
उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था कि धरती पर अगर सबसे ज्यादा हुस्न की मल्लिकाएँ कहीं हैं तो वे यहीं हैं… यहीं हैं… यहीं हैं…
ऐसा दिल कर रहा था कि सरेराह उनके अधोवस्त्र उतार कर ही उनके मखमली स्तन निचोड़ कर चूस जाऊँ, पर ये तो हमारे ख्वाब ही थे।
आखिरकार, हम चाचा के घर पर पहुँच गए, पास के होटल में खाना खाया और उनके कमरे पर सो गए।
फिर सुबह जब हमारी आँखें खुलीं तो हमारे लण्ड एक दूसरे के हाथों में थे। उसके बाद हम नाश्ता आदि करके तैयार हो गए और हरिद्वार के लिए बस पकड़ी।
कुछ देर में हम हरिदवार पहुँच गए और स्नान किया। उसके बाद पहाड़ी पर देवी मन्दिर की चढ़ाई करके प्रसाद चढ़ाया और देवी से मँगल कामना की।
हम दिन भर घूमते रहे और रात को थकान से चूर होकर लगभग मरणासन्न अवस्था में चाचा जी के कमरे पर पहुँचे, केवल खाना ही खाया तुरन्त सो गए।
अगले दिन तरोताजा महसूस किया और ॠषिकेश के लिए रवाना हो गए। चूंकि हम अपने साथ केवल गर्मी के कपड़े लाए थे, इसलिये हमें कहाँ ज्ञान था कि हम वहाँ दत्ती बजाते हुऐ फिरेंगे।
जैसे-जैसे पहाड़ नजदीक आ रहे थे, किसी पहाड़ी राजकुमारी को चोदने की आकांक्षा मन में बलवती हो रही थी।
अखिर में वहाँ पहुँचे और पूरा दिन पागल कुत्तों की तरह सड़कों पर डेले मारते रहे।
मुझे तो शक है कि शायद वहाँ के सारे दुकानदार हमारे चेहरे को जान गए होंगे। हम दोनों दिन भर तो सड़कों पर गांड मरवाते रहे और रात को सोने के लिए किसी बसेरा का ख्याल आया।
फिर हमें स्वर्ग-आश्रम में ही खुले में सोना पड़ा।
उस समय तो ऐसा लगा कि एसी कोच में लेटे हों, पर दो बजे ऐसा लगा कि गंगाजी में ही सो जाएं शायद वहाँ ही थोड़ी गर्मी मिल जाएगी।
सुबह उठे और चाय पीकर सोचा कि टिहरी चला जाए, बस स्टाप पर जाकर दो टिकट लिए और अपनी पीछे की सीटों पर बैठ गए और मोबाइल से पहाड़ों के फोटो लेने लगे लेकिन हमें कहाँ पता था कि नरेन्द्रनगर से हमें और भी हसीन नजारे देखने को मिलेंगे।
नरेन्द्रनगर आ गया, कोई एक दो यात्री उतरे, पर उतने ही चढ़ गए।
सब आगे की सीट पर बैठ गए और केवल हमारी वाली ही सीट ही खाली थी और सबसे अन्त में एक महाखूबसूरत लड़की चढ़ी तो हमारे लण्ड तनतनाने लगे और वो आगे सीट ना पाकर सीधे पीछे वाली सीट पर हमारे पास ही बैठ गई तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि आज काम हो गया।
उसे कहाँ पता था कि दो दरिन्दे उसका इंतजार कर रहे हैं।
मेरी नजर उससे हटने का नाम नहीं ले रही थी इसलिए मैं टकटकी लगा कर लगातार उसे निहारे जा रहा था।
वाह, क्या माल था… एकदम जबरदस्त कामुक काया..
उसने पीले रंग का सलवार-सूट पहना हुआ था, जिसमें वह बेहद मस्त लग रही थी।
उसने नजर का चश्मा भी लगा रखा था। इन कपड़ों में उसके उभार साफ़ नजर आ रहे थे।
मैंने तुरन्त राजेश से कहा- राजेश, आज चूत चक्रव्यूह में फँस सकती है और मेरे लण्ड की पहली प्यास भी बुझ सकती है।
उसने सहमति में सिर हिला दिया।
हम देसी जाट तेज-तेज अपनी ठेठ देहाती भाषा में बातें कर रहे थे, इसलिए वो भी हमें सुनने की कोशिश कर रही थी।
तब मैंने जान-बूझकर उससे टाईम पूछने का नाटक किया।
‘व्हाट्स दि टाईम नाओ..’
उसने भी बता दिया- नाईन ओ क्लॉक..
फिर राजेश और मैं आपस में दोबारा बातें करने लगे।
कभी-कभी वो भी हमारी बातों पर मुस्करा देती। अतः उसने मुझसे पूछ ही लिया- आप कहाँ के रहने वाले हो?
मैंने बता दिया, उसकी ओर बैठने के कारण मैं ही उससे बातें कर रहा था। अब शायद वह भी मेरी बातों से प्रभावित होने लगी थी।
अब और तीखे मोड़ होने के कारण वो मुझसे टकराए जा रही थी। जब ज्यादा टकराती तो ‘सॉरी’ बोल देती। इस प्रकार उसकी चूचियाँ मेरे से लगने लगी, बड़े सँतरों जैसी चूचियाँ लगने से मेरा लण्ड भी उठने लगा।
मैंने राजेश से कह दिया- साले तेरी तो दो-दो चेली हैं इसलिए तू बस खिड़की के बाहर ही देखता रह।
मैंने उससे पूछा- आप कहाँ जा रही हो?
उसने बताया- मैं अपने घर चम्बा जा रही हूँ।
अब वो भी खुलने लगी और हम दूसरी भी बातें करने लगे। मैंने धीरे से जान बूझकर एक हाथ उसके स्तन पर मार दिया और ‘सॉरी’ कह दिया।
उसने मुस्कुरा कहा कहा- कोई बात नहीं.. चलता है।
वो भी अब होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी, मैं भी समझ गया और मौके का फ़ायदा देख कर उसके पैरों में पैर उलझा दिए।
तब वो बोली- यह आप क्या कर रहे हैं?
मैंने कहा- आपने ही तो ऐसा किया है।
वो अब समझ गई कि मैं क्या कर रहा हूँ।
बस में अब और यात्री चढ़े और पीछे आकर बैठ गए। उसके बाद तो मैं उसकी तरफ केवल देखता ही रहा और वह भी मेरी तरफ नशीली आँखों से देखने लगी।
कुछ देर बाद साथ वे सभी सवारी उतर गईं और मैंने उनके जाते ही अपना एक हाथ उसकी जांघ पर रख दिया।
उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और अपनी मोटी-मोटी चूचियों से रगड़ते हुऐ हटा दिया।
अब मैंने उसका हाथ पकड़ा और चुम्बन करते हुए अपनी टाँगों पर रख लिया।
वो मेरे से सटकर बैठ गई और मैंने अपनी कोहनी से उसके मस्त स्तन पूरे दबा दिए।
उसकी धीरे से ‘आह’ निकली, पर उसे अब पूरा जोश और मजा आने लगा। अगले ही पल उसने मेरा हाथ अपने हाथों में डाल लिया और सहलाने लगी, मैंने उसके सूट के अन्दर अपना हाथ घुसा दिया और उसकी चूचियाँ मसलने लगा।
वो ‘ऊ..ऊ आह..आह..उम आह..’ की आवाजें निकालने लगी।
चूँकि बस चल रही थी इस कारण आगे वाली सीट पर बैठे लोगों को हमारा यह खेल न तो सुनाई दे रहा था और न दिखाई दे रहा था। उसकी चूचियाँ भींचने पर मेरा मन उन्हें चूसने का भी कर रहा था।
इसके बाद मैंने उसे अपने कन्धों पर झुका लिया और उसकी गर्दन पर अपनी जीभ और होंठों से चूमने और चाटने लगा, वह मदहोश हो गई।
मैंने अपना हाथ उसकी सलवार पर रख दिया और उसकी चूत को मसलने लगा।
वो बोली- ओ माय गॉड.. उऊम्म्म..!
उसके चूतड़ों की गोलाईयों को देख कर कोई भी मुठ्ठी मारने को मजबूर हो जाता। उसके बाद उसका नाड़ा खोल उसकी सलवार के अन्दर हाथ दे दिया, उसकी मुलायम चूत में उंगली देने से जन्नत का मजा मिल रहा था। अब मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए। मैं अपने एक हाथ से उसके मम्मों को दबा रहा था तो दूसरे हाथ से उसके चूतड़ रगड़ रहा था।
काफी देर तक उसके होंठ पीने के बाद मैंने उसे कमर से जकड़ लिया और अपने लण्ड पर उसका हाथ गिरा दिया। वो मेरी पैन्ट के बाहर से ही लण्ड को पकड़ कर हिला रही थी।
मुझे लग रहा था मेरा सुपारा लाल होकर फटने ही वाला है, पर उसी वक्त मादरचोद कंडक्टर ने चिल्ला दिया कि चम्बा आ गया।
उसने भी खिड़की के बाहर झाँक कर देखा और और मेरे गाल पर चुम्मा किया, अपने आपको थोड़ा सा ठीक किया और मुझे अपना फोन नम्बर दिया, मुझे ‘बाय’ कहा और नीचे उतर गई।
उसके बाद मुझे खुद अपनी मुठ्ठी मारनी पड़ी।
उसके बाद तो मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचता रहा क्योंकि मैं तो इसे प्यार ही मान रहा था और बाद में हम टिहरी पहुँचे और कुछ देर घूम कर, टिहरी का बाँध देखकर शाम को वापिस रूड़की आ गए।
घर आने के कुछ दिन बाद तक हमारी बातें होती रहीं पर जल्दी ही मेरा सिम ब्लाक हो गया जिस कारण मैं उससे गपशप करने से भी वंचित हो गया।
बहरहाल मैं आशावादी हूँ, इसलिए सही समय का इंतजार करता रहा। मैं बेशक सेमीफाईनल तक ही पहुँचा हूँ पर मुझे फाईनल न खेल पाने का मलाल है।
जी, हाँ, आप सही समझ रहे हैं मेरा लण्ड आज तक कुँवारा है, मैंने आज तक किसी चूत का स्वाद नहीं चखा है। एक कोशिश की परन्तु वह अधूरी रही। सभी दोस्तों को मेरा पुनः अभिनन्दन,
अगर भूलवश मुझसे किसी का दिल दु:खा हो तो मुझे माफ करें। मेरे दोस्तों मुझे ईमेल कीजिए और अपना आशीर्वाद देकर बताइए कि मेरी कहानी आपको कैसी लगी है।

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