पिता की साली मेरी घरवाली

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अर्जुन शर्मा है।

मैं पटना का रहना वाला हूँ और मेरी उम्र 18 साल है।

मैं “एम एस एस” का निरन्तर पाठक हूँ। मैंने यहाँ लगभग सारी कहानियाँ पढ़ी हैं और अब मैं अपनी कहानी लेकर आया हूँ।

यह कहानी मेरे और मेरी मौसी के बारे में है…

यह बात एक महीने पहले की है, जब मैं अपनी मम्मी को उनके माइके छोड़ने गया था।

वहाँ पहुँचने पर हमारा आवभगत बड़े ही शानदार तरीके से हुआ!!

मगर इस सबके बीच मैंने ये देखा की मेरे पिता की साली यानी मेरी मौसी – “गौरी” जो की मेरी हमउम्र थी, वह मुझे कुछ ज्यादा ही ध्यान से देख रही थीं।

हमें वहाँ पर दस दिन रुकना था, इसलिए पहले दिन थके रहने की वजह से मैंने सिर्फ़ आराम किया।

अगले दिन सुबह गौरी मुझे कमरे में चाय के साथ उठाने आई। नींद से उठने के कारण मैं चाय का कप ठीक से पकड़ नहीं पाया और सारी चाय मेरी जांघों पर गिर गई।

ये देख कर गौरी जल्दी से एक बर्फ़ का टुकड़ा ले आई और मेरे जाँघ पर रगड़ने लगी।

जलन ज्यादा होने की वजह से मैंने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया और आँख बंद करके दर्द कम होता महसूस करने लगा।

उसका हाथ मेरी जांघों पर घुम रहा था और धीरे धीरे बर्फ़ पिघल गई पर वह अभी भी मेरे जांघों पर अपने हाथ रगड़ रही थी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, हम दोनों ही सातवें आसमान पर थे कि तभी मेरी मम्मी ने उसे बुला लिया और उसे जाना पड़ा।

शाम को जब मैं छत पर घुम रहा था, तो वो मेरे पास आई और बोली – अब आप की चोट कैसी है?

मैंने कहा – पहले से तो बेहतर है पर मुझे लगता है कि मेरे चोट को अभी भी आपके हाथों की जरुरत है।

वो बोली – आपको मेरे हाथों की नहीं, दवा की जरुरत है। हाथ तो आपके पास भी हैं।

मैंने कहा – मेरे पास हाथ तो हैं, पर जो असर आपके हाथों में हैं। वो मेरे हाथों मे कहाँ?

वो बोली – मैं आपको दवा नहीं लगाने वाली।

मैंने कहा – सोच लिजिए, गौरी जी मैं मेहमान हूँ और अगर आप मेरी सेवा में कुछ कमी किजीयेगा तो मैं लौट के नहीं आऊँगा।

वो बोली – अच्छा ठीक हैं, जब सब खाना खाके सो जायेंगे तो मैं आ के आपको दवा लगा दूँगी।

इतना कहकर वो चली गई।

थोड़ी देर छत पर घूमने के बाद मैं भी नीचे कमरे में चला गया और रात होने का इन्तेज़ार करने लगा।

जैसे ही रात हुई, तो मैं सबसे पहले खाना खाकर अपने कमरे में आ गया और गौरी का इन्तेज़ार करने लगा।

मैंने समय देखा तो पाया कि अभी तो नौ ही बज रहे थे… अभी सबके सोने में एक घंटा बाकी था।

मैंने अपना मोबाईल निकाला और हेडफ़ोन लगा के ब्लु फ़िल्म देखते हुए उसके आने का इन्तेज़ार करने लगा।

फ़िल्म देखते देखते मेरी आँख लग गई।

दरवाजे पर किसी के आने के आहट से जब मेरी आँख खुली तो मुझे लगा की आज तो मेरे सारे सपने सच होने वाले हैं।

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