चिकनी चूत का पहला रस

सिखा मेरी गर्लफ्रेंड थी, जिसकी चुदाई अभी बाकी थी

चिकनी चूत के पुजारी का दोस्तों को नमस्कार !  आज मैं आप सभी को अपनी सहेली सिखा की कहानी सुनाने जा रहा हूँ जिससे मेरे कामसीन – सम्बन्ध कई सालों से पहले थे. दोस्तों मैं उसकी चिकनी चूत में ऊँगली कई बार कर चूका था पर चोदने का अवसर ही था जो की मुझे अच्छे से मिला नहीं था. हम दोनों विपरीतलिंगी थी जिसका मज़ा अपना ही था. मैं जानता था की और सिखा ने मुझे बताया था की वो अपनी चिकनी चूत की खुजली डिल्डो से भूजाती है और कभी तो खुली जगह ही हलकी सी ऊँगली ठूस देती है. यह साफ़ था की उसकी चिकनी चूत में कितनी आग लगती है. पहले तो मैंने यह सोचे रखा था की यह सब सेक्स मैं अपनी बीवी के साथ करूँगा पर अब मेरा भी मति – परिवर्तन हो चूका था. मैं भी उसकी चुत के लिए उतना ही भूखा हो चूका तह जीतन की वो सम्भोग करते समय किसी असली लंड की चाह रखती होगी.

मैंने एक दिन सिखा के साथ जान – बुझ कर कुछ बहाना बनाया और उसे अपे दोस्त के घर पर ले गया जहाँ को नहीं था. हम एक दूसरे आज फिर हर – रोज की तरह बात करते हुए चुम्मा – चाटी शुरू कर दी. हमारी चूमा  – चटाई इतनी ज़बरदस्त होने लगी की मेरे हाथ अब उसके गुप्त अंगों को सहलाने लगे. मैंने सिखा की जांघ को अपने हाथ से भींचते हुए उसकी कसके चुम्मी ली फिर नीचे से मस्त होते हुए उसके होंठों को चूसने में व्यस्त हो चला. मैं कुछ ही देर में उसके चुचों को अपनी कैद में भर लिया और उसके कुर्ती को उतार कर नंगे मोटे चुचों को बारी – बारी चूसने लगा. मैंने अब सिखा को मदहोश करते हुए उसे कुछ ही देर में कपडे उतार नंगी कर दिया.

चिकनी चूत में पहले ऊँगली और फिर लंड पेल दिया

मैं नीचे से सिखा की चुत की फांकों में ऊँगली भी करने लगा और उसके चुचों को को पीते हुए उसकी चुत पर थूक लगाया और अपनी उंगलियां अंदर – बहार करने लगा जिसके बाद तो हम दोनों को अपने होश सम्बालना दूभर हो गया था. मैंने अब कुछ भी सोचे बिना अपने लोहे जैसे कड़े लंड को निकाला जो की  कब से चूत के लिए तन के बैठा था और सीधे उस की चिकनी चुत के अंदर दे दिया. मेरे लंड के अंदर जाते ही उस की आह उह उह उह जैसे चींखें निकल पड़ी जिस पर मैंने उसको समझाया लंड अंदर जाने से थोडा दर्द सभी को होता हैं. मैं अपनी हसरत को पुरे करते हुए टकराव की कामुक आवाजों को साथ उसकी चुत को चोदे जा रहा था और सिखा भी अपनी गांड हिलाकर चुदाई का मज़ा ले रही थी.

आखरी के जोर के झटकों के साथ मैं अपनी परम सीमा पर पहुँच गया था. अब तो मेरे मुंह से भी सिसकियाँ छूट रही थी. अब मुझे जन्नत सा सुकून मिल रहा था. मैंने भी अपनी आँखों को दो पल के लिए मींच लिया और निकल जाने दिया अपने मुठ की पिचकारी को. मैं उसकी भीगी जाँघों को बीच चिकनी चूत में लंड को बरसाए जा रहा था. हम दोनों ने मिलकर जवानी के इस मिलन को भरपूर ही जिया था. तब से मैं और सिखा हमेशा इस आग में जलने का लुप्त उठाते हैं.

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