दोस्त की बहन का इलाज

सबसे पहले मैं आप सभी को अपना परिचय दे दूँ I मेरा नाम मनोज है। उम्र लगभग 40 साल और लंबाई 5 फुट 7 इंच है। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ और सरकारी नौकरी करता हूँ।
मेरी अबतक की जिंदगी बहुत ही रंगीन और सेक्स से भरपूर रही है। मैंने अपने बचपन में ही सेक्स का काफी सारा प्रैक्टिकल ज्ञान प्राप्त कर लिया था I धीरे धीरे मैं सेक्स मैनियॉक होता चला गया। मुझे जब भी चांस मिला किसी भी उम्र की लड़की या औरतो को किसी न किसी तरकीब से बिना जबरदस्ती किये कामयाबी से चोदा या छुप कर उनके नंगे जिस्मो को देखने का आनंद लिया। सोती हुई औरतो और लड़कियो के चुचे और गांड छूने का मौका मैं कभी हाथ से जाने नहीं देता।


मेरे विचार में सेक्स एक प्रकार की कला है जिसका मैं कलाकार हूँ।
ये तो हुआ मेरा परिचय……..
कहानी बस जरा सी देर में।
मुझे आशा है की ये कहानी आपको जरूर पसंद आएगी और आपका भरपूर मनोरंजन करेगी।ये कहानी है मेरे बचपन के लँगोटिया यार अब्दुल की बड़ी बहन फरीदा आपा की, अब्दुल मेरा बहुत गहरा दोस्त था और मैं बचपन से ही उसके परिवार के बहुत करीब था।
अब्दुल की बडी बहन फरीदा शादीशुदा थी लेकिन शादी के बाद उसके शौहर और ससुराल वालो ने उसे बाँझ घोषित कर के तलाक दे दिया था। तब से फरीदा आपा अपने मायके में ही रहती थी। वह पुराने ख़यालात की बहुत ही गंभीर स्वाभाव की थी और मुझसे कम ही बात चीत करती थी इसीलिए अपने ठरकी स्वभाव के बावजूद मैं भी उनसे दूर दूर ही रहता था।
अब्दुल के माता पिता ने फ़रीदा आपा की दुबारा शादी करवाने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी लड़का बाँझ लड़की से शादी करने को तैयार नहीं हुआ। इसके अलावा फ़रीदा बहुत खूबसूरत न होकर एक सामान्य शक्लोसूरत वाली सावली सी लड़की थी दोबारा शादी न हो पाने का एक बड़ा कारण यह भी था।
अचानक फरीदा आपा बीमार पड़ गई। उनकी ये बीमारी शारीरिक न होकर मानसिक थी। उन्हें दौरे पड़ने लगे । काफी इलाज के बाद भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ तो सबने ये मान लिया की उनपर कोई भुत प्रेत का साया है।अब्दुल एक ओझा को जानता था बल्कि ये कहैं की उसका भक्त था। वो ओझा पश्चिमी सिंघभूम जिले (ठीक ठीक जगह का नाम मैं जानबूझ कर नही दे रहा हूँ ) में पहाड़ी पर जंगल के बीच रहता था।
आखिर में अब्दुल ने अपने माँ बाप को फरीदा आपा को उसी ओझा के पास ले जाने कई सलाह दी क्योकि वह ओझा इस प्रकार के मरीजो का बहुत अच्छा इलाज करता था और उसके ईलआज से मरीज पूरी तरह ठीक भी हो जाते थे।
अंत में यही फाइनल हुआ की फरीदा आपा को उस ओझा को दिखाया जाये। अब्दुल ने मुझसे भी साथ चलने की रिक़ुएस्ट की क्योंकि वह अकेले अपनी बहन को सँभालने में सक्षम नहीं था। अगर कोई परेशानी होती तो मैं सहायता के लिए साथ में रहता। आखिरकार हम अपने सफ़र पर निकल पड़े, फरीदा आपा ने भी हमारा पूरा सहयोग किया और सफ़र के दौरान कोई मुश्किल पेश नही आई।
जब हम ट्रेन से सिंहभूम पहुचे तो सुबह के 9 बज चुके थे। फिर वहा से 3 घंटे के बस के सफर के बाद अब्दुल ने हमें बताया की अब ओझा की झोपडी तक यहाँ से कोई साधन नही है इसलिए आगे पेदल ही जाना होगा। इस बात से मैं बहुत परेशान हो गया लेकिन फरीदा आपा वहाँ पहुचने के लिए बहुत उतावाली हो रही थी।
पहाड़ियों के बीच से गुजरने वाला टेढ़ा मेढ़ा रास्ता बहुत मुश्किल था लगभग 5 किलोमीटर उस रास्ते पर पैदल चलने के बाद हम उसओझा की कुटिया तक पहुच गए। मैंने अंदाजा लगाया था कि ओझा की कुटिया घासफूस की बनी होगी लेकिन यह तो ईंटो से बनी टिन शेड वाली ईमारत थी। हम पहुचे तो वहा पर कुछ लोग पहले से ही मौजूद थे। हम लोगो को 1 घंटा इंतजार करना पड़ा । उन लोगो के जाने के बाद अब्दुल ओझा से मिलने अंदर गया। वह ओझा को काफी पहले से जानता था इसलिए काफी कॉन्फिडेंट लग रहा था।
हम बाहर इंतजार कर रहे थे और लगभग 15 मिंनट बाद अब्दुल ने हमें ओझा के विशेष कक्ष में बुलाया। ओझा तक़रीबन 40 साल का लंबे बाल और दाढ़ी वाला गोरे रंग का आदमी था।
जब वह फरीदा आपा की तरफ देख रहा था तब उसकी आँखों में वासना भरी साफ साफ दिखाई दे रही थी। मैं ओझा की तरफ से काफी संदिग्ध हो उठा औरमैंने उसपर कड़ी निगाह रखने काफैसला कर लिया। उसने फरीदा आपा से कूछ सवाल पूछे, सारे ही सवाल मेरी समझ से बहुत ही सामान्य और गैरजरूरी थे। फिर उसने अबदुल से कागज और कलम लाने को कहा फिर उसने सामान की एक लिस्ट बनवाई और अब्दुल से कसबे जा कर सारा सामान तुरंत लाने को कहा.:..मेरा शक और भी गहरा हो गया और मैं और भी ज्यादा सतर्क हो उठा। वहाँ पर ओझा के कमरे के बाहर एक चौकीदार के सिवा और कोई भी आदमी नहीं था। चौकीदार बहुत हट्टा कट्टा और डरावनी शकल वाला था।
अब्दुल के जाने के बाद ओझा ने चौकीदार को आवाज दी और हमारे लिए कुछ शरबत वगैरा लाने को कहा।
ओझा की हरकतों से मुझे कुछ गड़बड़ी की बू आ रही थी। फरीदा आपा मुझसे काफी दूर पर बैठी थी और उन्होंने एक बार भी मुझसे कोई बात नहीं की थी। मैं अपनी जगह से उठा और टहलते हुए ईमारत के बाहर आ गया। मैं दबे पाँव ईमारत के पिछले हिस्से की ओर निकल गया वहाँ से मैंने देखा के पिछवाड़े की एक खिड़की खुली है। उत्सुकतावश मई झुक कर उस खिड़की के करीब गया और अंदर झांक कर देखने की कोशिश की। अंदर चौकीदार हमारे लिए शरबत बना रहा था। लेकिन उसकी हरकतों ने मुझे संदेह में डाल दिया।
उसने शरबत तैयार करने के बाद एक संदूक खोल कर उसमे से एक शीशी निकली, जिसमे सफ़ेद रंग का कोई पाउडर भरा हुआ था। मुझे लगा के चौकीदार इस पाउडर को शरबत में मिलाने जा रहा है इसलिए मैंने अपना फोन निकाला और चौकीदार की वीडियो बनानी शुरू कर दी। शरबत के दोनों गिलास अलग अलग डिज़ाइन के थे। मैंने देखा की चौकीदार ने एक गिलास में पाउडर डालकर अच्छी तरह मिला दिया। जब चौकीदार का काम ख़त्म हो गया तो मैंने रिकॉर्डिंग बंद कर दी और दबे पाँव अपनी जगह पर वापस आ के बैठ गया। तभी चौकीदार हमारे लिए शरबत ले कर आ पंहुचा। मैंने ध्यान दिया की पाउडर वाला गिलास उसने फरीदा आपा को पकड़ाया और दूसरा मुझे। शरबत का स्वाद वाकई लाजवाब था, हमने शरबत पी कर गिलास वापस कर दिए और चौकीदार गिलास ले कर वापस लौट गया। अब्दुल के वापस आने में अभी कम से कम 4 घण्टे बाकी थे।
लगभग 20 मिनट के बाद फरीदा आपा के पेट के निचले हिस्से में हल्का हल्का दर्द महसूस होने लगा जो धीरे धीरे तेज और तेज होता जा रहा था। उनके कराहने की आवाज सुनकर चौकीदार दौड़ता हुआ हमारे पास आया और फरीदा आपा से पूछा “क्या बात है ?”
“मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है।” फरीदा आपा कराहते हुए बोली। चौकीदार भाग कर ओझा के पास गया और उसको फरीदा आपा की तकलीफ के बारे में बताया।
2 मिनट बाद चौकीदार वापस आया और उसने मुझसे कहा की इनको बाबाजी के विशेष कक्ष में ले चलिए।
मैं फरीदा आपा का बाजू पकड़ कर चलाता हुआ उनको ओझा के कमरे में ले गया। ओझा ने मुझसे फरीदा आपा को वही एक किनारे पड़े बिस्तर पर लिटा देने को कहा, मैंने उन्हें उस सफ़ेद बिस्तर पर धीरे से लिटा दिया फिर ओझा ने मुझे कमरे के बाहर चले जाने का आदेश दिया। अबतक मुझे दाल में काला क्या पूरी की पूरी दाल ही काली नजर आने लगी थी। मैंने किसी न किसी तरह कमरे के अंदर देखने का फैसला कर लिया और पुरे कमरे में निगाह दौड़ाई, मुझे वहा एक खिड़की दिखाई दी जो पिछवाड़े में खुलती थी फिर मैं कमरे के बाहर आ गया। मेरे बाहर आते ही चौकीदार ने कमरा बाहर से बंद कर दिया और खुद दरवाजे के बाहर खड़ा हो गया। उसने मुझे बाहर बैठ कर इन्तेजार करने को कहा।

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