दोस्तो, आज मैं आपको एक और सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ जो अनजाने में मुँह-बोली बहन की चुदाई से ख़त्म हुई।
विदर्भ के वर्धा जिले में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते हैं, जिनके लड़के की शादी अमरावती से सटे एक गाँव खेड़े में तय हुई थी।
जिस लड़की के साथ शादी तय हुई थी उनका सरनेम और मेरा सरनेम एक ही था जिसके वजह से मैं उसको बहन के नाते से ही बात करता था।
उनकी शादी 2003 में हुई और अभी तक उनको दो बच्चे हैं। वो मुझसे 4 साल छोटी है और उसका का नाम जयश्री है। वो दिखने में एकदम सुन्दर और पूरा सेक्सी फिगर है। उसकी ऊँचाई 5’4”, स्तन 34″, कमर 32″ और कूल्हे 34″ के हैं। मैंने अभी तक कभी उसको बुरी नजर से नहीं देखा था।
जयश्री के पति के साथ मेरा दोस्ताना स्वभाव होने की वजह से हम दोनों भी एक-दूसरे की बीवी के बारे में या चुदाई के बारे में खुलकर बात करते थे।
वो हमेशा अपनी बीबी के बारे में यानि मेरी मुँह-बोली बहन जयश्री के बारे में कहता था कि उसे जबरदस्ती या दर्द देने वाले सेक्स में मजा आता है और साथ ही बहुत ही खुलकर सेक्स का मजा लेती है।
बात अभी की है, 2011 के रक्षाबंधन के समय मैं अपने कार्यालय के काम से वर्धा गया हुआ था।
वर्धा पहुँचते ही मैंने जयश्री के यहाँ फोन करके बता दिया था कि काम ख़त्म करके मैं अमरावती जाने के पहले थोड़े देर के लिए आऊँगा। शाम को करीब 5 बजे मैं उसके यहाँ पहुँचा।
उसने चाय-नाश्ता आदि बनाया और कहने लगी- भैया, मैं भी आपके साथ अमरावती चलूँगी।
रक्षाबंधन के वजह से उसे भी अपने भाई को राखी बाँधने के लिए गाँव जाना था।
मैंने पूछा- क्यों धनराज साथ में नहीं आने वाला क्या?
तो जयश्री बोली- वो चंद्रपुर गए हुए हैं और 2-3 दिन नहीं आएँगे।
तो मैंने ‘ह्ह्म्म…’ करके उसे अपने साथ चलने के लिए ‘हाँ’ बोल दिया। मैंने वहीं पर उनके यहाँ खाना खा लिया और जाने के लिए राह देखने लगा।
रात के करीब 7.30 बजे थे, उसने अपनी छोटी लड़की को अपने साथ में लिया जो एक साल की थी और उसका बैग मैंने पकड़ लिया।
मैं बोला- तेरा बड़ा लड़का नहीं आ रहा क्या?
तो वो बोली- उसका स्कूल है, वो अपने दादी के पास ही रहेगा।
हम लोग 8 बजे बस-स्टैंड पहुँचे और 8.30 वाली बस में बैठ गए, लेकिन त्यौहार होने की वजह से हमें सीट नहीं मिल पाई। हमें मालूम था की सीट नहीं मिलने से आज बहुत ज्यादा तकलीफ होने वाली है क्योंकि ढाई-तीन घंटे का सफ़र था।
बस को चलना शुरू हुए आधा घंटा बीत चुका था, मैं दोनों बैग पकड़ कर और वो लड़की को लेकर खड़ी थी। इतने में एक बुजुर्ग आदमी ने उससे लड़की को लेकर अपने पास सुला लिया और मैंने भी दोनों बैग सीट के नीचे डाल दिए।
समय गुजरता जा रहा था और हर स्टेशन पर से भीड़ बढ़ती ही जा रही थी, जिससे अब ज्यादा ही गर्दी बढ़ गई थी। भीड़-भाड़ होने की वजह से मैंने जयश्री को अपने तरफ बुला लिया और अपने सामने खड़ा कर लिया। अभी और एक घंटे का सफ़र बाकी था इसलिए ड्राइवर ने बस की लाईट बंद कर दी थी।
मेरे सामने जयश्री खड़ी थी, जिससे उसके चूतड़ मेरे लंड से बीच-बीच में चिपक जाती थी। अचानक एकदम से ड्राइवर ने बस के ब्रेक लगा दिए, जिससे मैं पूरी तरीके से जयश्री के बदन से चिपक गया और इसका नतीजा यह हुआ कि वो और भी ज्यादा करीब आ गई। अब मेरा लंड सीधे तौर पर उसकी पिछाड़ी की दरार में लगा हुआ था।
भले ही वो मेरी मुँह-बोली बहन थी, लेकिन इन्सान होने के नाते औरत का स्पर्श और वो भी गांड का स्पर्श होने से मेरा लंड धीरे-धीरे टाईट हो रहा था। अब मेरी वासना जग गई थी। मेरे दिमाग में बार-बार यही आ रहा था कि क्यों ना लंड चिपकाने का मौका मिला है तो उसका फायदा उठाया जाए। अगर जयश्री को बुरा ही लगा तो बोल दूँगा कि भीड़ होने की वजह से ये सब हो गया।
अब मैं जान-बूझकर अपना लंड भीड़ का सहारा लेकर जयश्री की गांड से रगड़ रहा था। अँधेरा होने की वजह से आजू-बाजू वालों को ये सब दिख नहीं रहा था।
धीरे-धीरे मैंने लंड को अपने एक हाथ से पैन्ट के अन्दर से ही सीधा किया और जयश्री के गांड के बीच में सैट कर दिया और लंड से उसकी गांड को हौले-हौले धक्के मारने लगा।
अब तक जयश्री को पता चल गया था कि मैं उसकी गांड में अपना लंड डालना चाहता हूँ। उसने अपना मुँह पीछे घुमा कर मेरी तरफ देखा और हल्की सी ‘मुस्कान’ दी और सामने देखने लगी।
मैं समझ गया था कि जयश्री को भी अच्छा लग रहा है, इसलिए अब मैंने अपना एक हाथ धीरे से उसके पेट के पास लेकर गया और लोगों से निगाह बचा कर हाथों से उसके स्तन-मर्दन करने लगा। वो भी मेरा साथ देने लग गई थी, वो अपनी गांड को मेरे लंड पर घिस रही थी।
रात के 11.30 बज गए और हम लोग अमरावती पहुँच गए। वहाँ से वो स्पेशल ऑटो करके अपने तीन किमी. दूर गाँव जाने वाली थी। लेकिन मैंने उसे मना कर दिया और बोला- जयश्री मेरा लंड अब खड़ा हो गया है और तुम इसे ऐसा ही छोड कर गाँव जा रही हो।
तो वो बोली- तो तुम बताओ क्या करेंगे?
मैं बोला- एक काम करते हैं, आज की रात यहीं पर होटल में रुक जाते हैं। मेरे पहचान वाले का यहाँ होटल है। कोई तकलीफ नहीं होगी। कल सुबह 8 बजे गाँव चली जाना।
तो वो मान गई और हमने एक रूम रात भर के लिए किराये से ले लिया।
हम रूम में पहुँचे और सामान रखने के बाद फ्रेश होकर वापस आ गए। उसकी लड़की अभी भी सो रही थी। मैंने अपना पैन्ट और शर्ट निकाल कर रख दिया। अब मैं बस बनियान और चड्डी में था।
जयश्री भी शरमा नहीं रही थी, इसीलिए मैंने ही पहल करके उसे बोला- क्या ऐसे ही एक-दूसरे को देखते रहेंगे या कुछ करेंगे?
वो बोली- बस में शुरूआत आपने ही की थी तो यहाँ भी आप ही शुरूआत करो।
इतना सुनते ही मैंने उसको अपनी बाँहों में खींच लिया और उसको होंठों को, गर्दन को चूमने लगा। जिससे उसकी दोनों चूचियाँ मेरी छाती से चिपक गई थीं।
मैंने उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और पूरी साड़ी को निकाल कर एक तरफ डाल दिया। अब उसकी दोनों बड़ी-बड़ी चूचियाँ लाल ब्लाउज से बाहर निकलने के लिए तैयार थीं। ब्रा और ब्लाउज का कसाव ज्यादा होने की वजह से आधे मम्मे ऊपर की तरफ से बाहर आ रहे थे।
मैंने उसे आधा बेड पर और पैर नीचे रख के लिटा दिया और मैं उसके ऊपर आ गया। अपने दोनों हाथों से उसकी चूचियों को मसलना शुरू किया। जितना जोर से उसके मम्मे दबाता, उतना ही उसे आनन्द आ रहा था। वो भी एक सेक्सी औरत थी इसलिए वो भी मेरा लंड चड्डी में से ही आगे-पीछे कर रही थी।
कुछ देर के बाद मैंने उसके पूरे कपड़े उतार दिए। अब वो पूरी तरह से एकदम नंगी थी। मैंने भी अपनी चड्डी और बनियान उतार दी। वो मेरे से सिर्फ 1″ छोटी थी, इसीलिए मेरा और उसका मुँह, मेरा लंड उसकी चूत बराबर एक-दूसरे के सामने आ रहे थे।
हम दोनों ने एक-दूसरे को बाँहों में भींच लिया और पूरे नग्न शरीर को चूमना शुरू किया। मैं होंठों को, उसकी चूचियों को अपने मुँह में लेकर चूस रहा था। वो भी अपने एक हाथ से मेरा लंड आगे-पीछे कर रही थी। बीच-बीच में मैं उसके चूचकों को अपने दातों से काट रहा था, तो उसे बहुत मजा आ रहा था।
अब उसने मुझसे अपने आप को दूर कर लिया और नीचे पैरों पर बैठ गई, जिससे उसका मुँह और मेरा लंड आमने-सामने थे। मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर मेरे चूतड़ों के पास दबा कर रख लिया और मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
वो इस तरीके से लंड चूस रही थी, मानों मैं अपना लंड किसी रांड से चुसवा रहा होऊँ। इसका मुझे मजा आ रहा था और मैं भी अपने तरफ से लंड को और आगे-पीछे कर रहा था।
धीरे-धीरे उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी और जोर-जोर से अन्दर-बाहर करने लगी। इसका असर ऐसा हुआ कि मैं अपने पानी को रोक नहीं सका और पूरा पानी उसके मुँह में छोड़ दिया।
अब मेरा लंड 2″ का होकर रह गया था, तो वो बोली- भैया.. सिर्फ इतने से आपका लंड ढीला हो गया..! तो पूरी रात कैसे कटेगी और मेरी चूत की प्यास कैसे बुझेगी? देखना है तो देख लो अभी भी चूत का पानी नहीं छूटा।
मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में डाल के देखी तो सही में पूरी की पूरी चूत सूखी थी।
वो बोली- ठीक है कोई बात नहीं, जैसे आपके लंड को ढीला किया वैसे ही अब इसको टाईट कर देती हूँ। ये सब बोल कर उसने फिर से मेरा ढीला लंड अपने मुँह में भर लिया और लंड को चूसने लगी।
मैंने सोचा क्यों ना मैं भी जयश्री की चूत चाट लूँ, तो मैंने जयश्री को बोला कि हम दोनों 69 की अवस्था में आ गए। वो मेरा लंड चूस रही थी, मैं उसकी चूत चाट रहा था।
थोड़ी देर के बाद मेरे लंड में फिर से वही कड़ापन आ गया। उसकी चूत चाटने की वजह से उसकी चूत भी अब गीली हो गई थी।
अब मैंने जयश्री को अपने लंड पर बैठा लिया और एक ही झटके में पूरा लंड उसकी चूत में पेल दिया। मैं जितना जोर से उसे पेल रहा था, उससे भी ज्यादा जोर से वो अपनी फुद्दी को मेरे लंड पर ऊपर-नीचे कर रही थी। साथ में जोर-जोर से आवाजें भी निकाल रही थी, “… आह्ह्ह… हूहू… आह्ह… हू…!”
ऐसा करीब दस मिनट तक चला। मेरा भी दूसरी बार खड़ा हुआ था, इसकी वजह से पानी नहीं गिर रहा था।
अब मैंने जयश्री को नीचे लिटा लिया और उसके दोनों पैरों को अपने हाथों से दबा कर उसके कंधों को ऊपर से दबा दिया। जिससे उसकी चूत पूरी की पूरी मेरे लंड के सामने थी, मैंने एक ही झटका मारा और पूरा लंड उसकी चूत में समा गया।
वो जोर से चिल्लाई, “उई माँ…मर गई…मारो… और जोर से… फोड़ डालो… ‘कम-ऑन’ भैया… आज रात भर चोद डालो मुझे।
अब मैं भी कहाँ रुकने वाला था। मैं भी पूरी ताक़त के साथ अपने लंड को जयश्री के चूत में घुसा रहा था। वो भी अपने चूतड़ हिला-हिला कर मेरा साथ दे रही थी।
मैं दोनों हाथों से उसके स्तन दबा रहा था। वो भी झड़ने का नाम नहीं ले रही थी और मैं भी झड़ नहीं रहा था।
धीरे-धीरे मैं थकते जा रहा था, तो वो बोली- रुक जाओ दो मिनट.. उसके बाद करेंगे।
दो मिनट के बाद वो कुतिया बन गई और मुझे लंड डालने के लिए बोलने लगी।
मैंने भी अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और उसकी चूत मारने लगा।
ऐसे ही वो मुझे जोर-जोर से चोदने के लिए उकसा रही थी और मैं उसकी बातें सुन कर जोर-जोर से चोद रहा था।
दस मिनट के बाद मैं पूरा पसीना-पसीना हो गया फिर भी हम दोनों झड़ने का नाम नहीं ले रहे थे।
आखिर में जयश्री बोली- चलो अब मैं आपको चोदती हूँ।
उसने मुझे लम्बा लिटा दिया और अपनी मुंडी को मेरे पैरों के तरफ करके मेरे लंड को अपने चूत में डलवा लिया। अब मैं एकदम सुस्त लेटा हुआ था, अब जो कुछ भी कर रही थी वो जयश्री ही कर रही थी।
उसने मेरे पैरों को अपने हाथों से दबा कर रखा और जोर-जोर से अपने चूतड़ को मेरे लंड पर ऊपर-नीचे कर रही थी। जिससे मेरा 6″ का लंड फच-फच करता हुआ उसकी चूत की गहराई तक पहुँच रहा था। वो जोर-जोर से धक्के मारते हुए चिल्ला रही थी।
आखिर में अगले पांच मिनट के बाद मैं झड़ गया फिर भी वो झटके मार रही थी और थोड़ी देर के बाद वो भी झड़ गई।
हम रात भर नंगे ही सोए और सुबह-सुबह हमने फिर से चुदाई का कार्यक्रम जमाया।
इस बार जयश्री ने अपनी गांड भी मरवाई, जो अभी तक कुंवारी थी। जयश्री की आँखों से आंसू निकल आए थे, जब गांड की चुदाई हुई। लेकिन उसका भी वो आनन्द उठा रही थी।
काश जयश्री की सीलबंद चूत मैं तोड़ पाता?
सुबह हम दोनों अपने-अपने घर चले गए।
अब जब भी मैं वर्धा जाता हूँ और जयश्री के घर पर कोई नहीं रहता तो मैं जयश्री चूत चोदे बगैर लौटता ही नहीं हूँ।
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