मुंबई सेंट्रल उतर के हम लोग पहले तो हनीफ के टिकिट और पासपोर्ट के लिए अँधेरी जाने वाले थे. यूपी से यहाँ तक का सफर काटने में बड़ी मसक्कत हुई थी. एन मौके के ऊपर एजंट ने बोला की 4 दिन के बाद आप का फ्लाईट हे मुंबई से. पैसे तो हनीफ के चाचा ने पहले ही दे दिए थे एजंट को. अब मुंबई में अँधेरी बड़े एजंट की ऑफिस से पासपोर्ट और टिकट ले के एअरपोर्ट जाना था. हनीफ ने मुझे कहा तो मैं फटाक से रेडी हो गई मुंबई के लिए. मैंने अक्सर अपने घर के बड़ों को और जो मुंबई जा के आये हे वो दोस्तों से सुना था की मुंबई में बड़े बड़े दो रंडी बाजार हे. और हिंदी फिल्मों में भी तो दिखाते हे. मन में मुंबई की रंडी को चोदने के सपने के साथ ही मैं हनीफ के साथ आया था.
हनीफ की शादी कुछ महीने पहले ही हुई थी. हम दोनों के अलावा एक और दोस्त कासिम हमारे साथ में था. कासिम सीधा सा था जबकि मैं और हनीफ मस्तीवाले. सेंट्रल से अँधेरी का सफर तय कर के हम थक से गए थे. लेकिन पता भी नहीं था की फ्लाइट कब की हे इसलिए जाना जल्दबाजी में ही पड़ा. अँधेरी में ऑफिस ढूंढते हुए और एक घंटा लगा. फिर ऑफिस से टिकट मिला तो वो दुसरे दिन रात का था. हमारी जान में जान आई. सामान का बोझा ले के हम लोग वापस सेंट्रल आ गए. मैंने ही जिद की थी सेंट्रल में रहने की. क्यूंकि मुझे पता था की वहां स्टेशन के सामने ही एक गली हे जहाँ पर मुंबई का छोटा रंडी बाजार हे.
मैंने उस गली के सामने ही एक छोटे से लोज में तिन पलंग लिए. जी हां दोस्तों मुंबई में पलंग मिलते हे सोने के लिए, पूरा कमरा नहीं लिया था हमने.
हनीफ और मैं खाने के लिए निचे गए तब कासिम हमारे बेग देख रहा था. कासिम को मैंने कहा की तेरा खाना ऊपर ले आयेंगे हम लोग. वो बोला ठीक हे मैं तब तक नाहा लेता हूँ.
मैं और हनीफ सामने निकले. रस्ते पर निकलते ही हनीफ ने भी देखा की ये एक चकले वाला एरिया था. रस्ते में रंडियां खड़ी हुई थी और दल्ले भी इधर उधर घूम रहे थे.
मैंने हनीफ से कहा, तू चलेगा क्या?
वो बोला, कहाँ पर?
मैं: साले ये चकला हे पूरा, कासिम तो नहीं आएगा लेकिन मैं यहाँ मुंबई तक आया हूँ तो मजे ले के ही जाऊंगा. गाँव में तो पकडे जाने का डर रहता हे. और यहाँ तो पुलिस भी जानती हे की चकला हे इसलिए आराम से मजे कर सकते हे.
हनीफ: यार मेरा भी बड़ा मन हे. सऊदी जाने के बाद तो लंड को बाँध देना पड़ेगा. क्यूंकि साला वहां तो जिनाह (बहार किसी के साथ सेक्स) करने पर मार देते हे.
मैं: यार एक काम करते हे ना एक ही रंडी करते हे. जैसे की हम लोग स्कुल के टाइम वो नफीसा को चोदते थे ना एक ही लड़की और हम दोनों.
हनीफ: साली मस्त माल थी ना नफीसा भी.
मैं: हाँ शादी का कार्ड देने के लिए आई थी तब सालों के बाद देखा था. हम उसके चीकू जैसे मम्मे चूसते थे वो नारियल जैसे थे जब वो कार्ड ले के आई थी.
हनीफ: साली गजब की थी ना लेकिन.
मैं: हां यार बचपन की बात और थी, तब तो हम पीपल के पेड़ के पीछे भी कुतिया बना के चोद लेते थे. अब साला बड़े हुए तो उलझने बढती ही गई.
हनीफ बोला: कासिम का क्या करेंगे?
मैं: वो नहीं आएगा.
हनीफ: एक बार पूछ लेंगे उसे ऐसा ना लगे की हमने कुछ कहा नहीं, वो भी दोस्त हे यार.
हम लोगों ने नुक्कड़ की एक दूकान पर एग राईस खाए. और मैंने हनीफ से कहा की चल अंदर तक हो के आते हे. रस्ते में ही एक दल्ला मिला. उसने हमें देखा और बोला, साहब माल चाहिए?
हनीफ ने मेरी और देखा. मैंने कहा, कहा हे?
वो बोला: चाहिए तो चलो मैं ले के चलता हूँ.
मैं: एक साथ दो तिन लोग चलेंगे?
वो बोला: पैसे दो आदमी के देने पड़ेंगे.
मैंने कहा, तिन आदमी हो के आये दो के पैसे में तो?
वो बोला, 800 रूपये लगेंगे तिन आदमी के.
मैंने कहा, पहले दिखाओ तो.
वो बोला, तुम तो दो हो?
मैंने कहा, तुम यही हो ना हम लोग कुछ देर में आते हे.
वो बोला, चलो निकलो सालो चोदने आये हो या बाजरा खरीदने!
उसने हमें हड़का सा दिया. हम लोग कासिम के लिए पार्सल ले के ऊपर गए. वो सो रहा था. उसे उठा के हमने खाना दिया उसे. मैं और हनीफ एक दुसरे को देख रहे थे. कासिम से रंडीबाजी की बात कौन करे उसके लिए ही तो.
मैंने कमान अपने हाथ में लिए और उसे कहा, कासिम यार एक बात कहूँ?
उसने एग राईस को प्लास्टिक की चम्मच से गले में डालते हुए कहा, हूँ.
मैंने कहा, एक आइटम मिली हे यहाँ रोड पर, तू चलेगा?
वो बोला, कैसी आइटम?
मैंने नाक के ऊपर हाथ रख के गर्दन को थोडा मोड़ा, वो बोला, साले तुम लोग यहाँ पर भी!
मैंने , भाई यहाँ पर ही तो होता हे. मुंबई की रंडी दुनिया में मशहूर हे तो!
वो बोला, कोई लफड़ा हुआ तो?
अब की हनीफ ने कहा, कैसा लफड़ा भाई, कुछ नहीं होगा यार.
कासिम ने कहा, ठीक हे!
मैं सच में ऐसे सोचता था की ये सब के लिए कासिम कभी रेडी नहीं होगा. लेकिन वो तो चुदाई के लिए रेडी ही था. खाने के बाद हमने हनीफ के टिकिट पासपोर्ट को एक बेग में छिपा के रख दिया और उस बेग को हमने डबल सक्क्ल से बाँध दिया पंग के साथ. उसे पलंग के निचे कौने में धकेल दिया था हमने ताकि ऊपर से तो दिखे ही नहीं. फिर हम लोग बहार आये. एग राईस की लारी के सामने ही वो दल्ला बीडी पी रहा था. हम लोग उसके पास ही गए.
वो बोला, अच्छा तीसरे को ले आये!
मैंने कहा, हां अब दिखाओ.
वो बोला चलो.
फिर वो हम को ले के एक पतली संकरी गली में घुसा. और इस गली के दोनों तरफ के घरो में सिर्फ ब्लाउज पहने हुए 17 से ले के 65 साल की औरतें खड़ी थी. कोई कहती थी अरे ओ बिहारी बाबु आ जाओ, नया माल आया हे. तो कोई कहती थी आजा मेरे राजा बर्तन खड़का ले!
वो दल्ला हमें एक मकान में ले गया. वो पुराना मकान था शायद अंग्रेजो के जमाने का. वो नीचे एक पान चबाती हुई औरत से कुछ बोला मराठी में. और उसने हमें देख के कहा, संध्या, मुस्कान और राबिया दिखाओ इन्हें. बाकी की तो एक ही लेटी हे एक टाइम में.
ये तिन रंडियाँ दिखाने के लिए उसने अपनी एक रंडी को ही कहा था. जो हमें दिखाने के लिए आई थी वो भी मस्त माल थी बड़ी गांड वाली. राबिया पहले देखि हमने, वो बूढी लगती थी और बूब्स भी छोटे थे उसके. संध्या मिडल में आई. वो मोटी आंटी थी और उसके बूब्स और गांड दोनों बड़े बड़े थे. किसी मल्लू आंटी के जैसी ही मस्त लग रही थी वो.
मुस्कान कद में छोटी थी और दोनों ने जवान थी. लेकिन उसके चहरे पर स्माइल नहीं था जैसे हगा नहीं था उसने सुबह से ले के अब तक. संध्या के ऊपर ही चुदाई की मुहर लग गई. दल्ले ने पहले ही पैसे ले लिए हमसे. संध्या 45 साल के ऊपर की थी और उसने टाईट ब्लाउज और ऊपर सेक्सी साडी पहनी हुई थी. देखने में ही वो किसी सेक्स बम के जैसी लगती थी. वो बोली, चलो.
वो आगे आगे और हम तीनो दोस्त उसके पीछे पीछे. वो ऊपर एक कमरे में ले के गई. कमरा काहे का वैसे, बस कार्डबोर्ड से पार्टिशन किया हुआ था. एक पलंग था और साइड में बस चार लोग अपने पैर रख सके उतनी जगह. दो आदमी के चोदने के लिए जगह थी उसमे हम चार लोग घुस गए. संध्या ने फट से अपनी साडी उतार के टांगी और वो अपने ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोली, चलो जल्दी जल्दी से कपडे खोलो अपने बहुत टाइम नहीं हे मेरे पास, खोटी मत करो.
हनीफ और मैं जल्दी से नंगे हो गए. हमें देख के कासिम ने सिर्फ पेंट खोली, हम दोनों तो पुरे नंगे थे.
हनीफ ने मुझे कहा, तू पहले कर ले.
संध्या निचे बिस्तर में लेट गई और उसने मेरे लंड को पकड़ा. उसके हाथ लगाते ही लंड खड़ा हो गया. वो अपनी टांगो को खोल के लेट गई और लंड को उसने सीधे अपनी चूत में डाला. उसकी चूत पिच पिच सी थी जैसे कुछ देर पहले ही लंड लिया हो उसने. मेरा लंड एकदम से घुस गया उसके बुर में. मैं जोर जोर से लंड के धक्के दे के उसे चोदना लगा. संध्या ने अपनी चूत को कस लिया था और मैंने उसे पांच मिनिट तक चोदा और पानी निकल गया मेरा. जैसे ही पानी निकला उसने मुझे सीधे ही धक्का दिया और बोली, चल उठ जल्दी से.
फिर कासिम की और देख के बोली, चल बे तू.
और उसने अब कासिम के लंड को पकड के अपनी बुर में ले लिया. कासिम को जैसे चोदने में शर्म आ रही थी. वो दो तिन मिनिट में ही खाली हो गया.
अब हनीफ की बारी आई. उसने संध्या को कहा, पीछे करने देती हो.
संध्या बोली, चल भाग भोसड़ी के, पीछे कुत्ते बिल्ली नहीं करते तुम लोग करने आये हो.
हनीफ: अरे भड़कती क्यूँ हो एक्स्ट्रा पैसे ले लेना.
संध्या: मैं रंडी ही लेकिन बेशर्म नहीं.
हनीफ को भी उसकी चूत ही चोद्नी पड़ी. लेकिन उसने बड़े मजे लिए. वो संध्या के बूब्स दबा रहा था और उसको चोद रहा था. मैं उसे देख रहा था और मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया. हनीफ का ख़तम हुआ तो मैंने कहा, एक बार और.
ये हॉट मुंबई की रंडी ने कहा, पैसे देने पड़ेंगे उसके लिए.
मैंने कहा, कितने.
वो वो बोली, डेढ़ सो रूपये.
मैंने दे दिए और फिर से उसके ऊपर चढ़ गया.
अब की मेरी चुदाई लम्बी चली. और हनीफ के जैसे मैंने भी अब की बार संध्या के बूब्स चुसे और उसके गले में भी किस दिए. वो अपनी गांड को हिला हिला के मेरा पानी 10 मिनिट में ही छुडवा गई.
दुसरे दिन हनीफ को एअरपोर्ट पर छोड़ के अब हम सिधे ही उस रंडी खाने पर गए. पहले दल्ले ने 800 लिए थे. लेकिन डायरेक्ट जाने पर 400 में मेरी और कासिम की चुदाई हो गई!!!