शादीशुदा लड़की के साथ बिताये कुछ हसीन पल

दोस्तो, मेरा नाम कुणाल सिंह है। बहुत समय बाद अपने ज़िन्दगी की असली कहानी लिखने जा रहा हूँ।
जितना प्यार आपने मेरी पुरानी कहानियों

को दिया हैं, उम्मीद करता हूँ उतना ही प्यार आप मेरी इस कहानी को देंगे।

मेरी सगी मौसी की चुदाई के बाद मैंने कई चुदाई की। कुछ बार उनकी, कुछ बार उनकी सहेलियों की, तो कभी उन कहानियों को पढ़ कर कुछ प्रिय पाठिकाओं की.
आओ, अब सीधा कहानी पे चलते हैं.

वैसे तो मेरे मेल पे कई मेसेज आते रहते हैं औरत के नाम से, पर उनमें ज्यादा मर्द ही होते हैं। पता नहीं लोग फर्जी नाम से बात क्यों करते हैं जब वो बात मर्द होकर भी की जा सकती है।

मेरी कहानी की नायिका है गरिमा। एक औरत जिसकी शादी को दो साल हुए हैं। गरिमा से मेरी बात मेल के जरिये चालू हुई। उन्हें मेरी कहानी बेहद पसंद आई थी। पर उन्हें ये अजीब लगा कि नयी उम्र का लड़का होते हुए मुझे उम्र दराज़ औरतें क्यों पसंद हैं। क्यूंकि न तो उन औरतों में फिगर वैसा रहता है और न बूब्स में कठोरता, समय के साथ सब ढीला हो जाता है। सही कहूं तो मुझे भी नहीं पता था इसका जवाब। खैर वो बात पुरानी थी जब मौसी के साथ मेरा पहला मिलन हुआ था. पर अब मैं बड़ा हो चुका हूँ।

बातें होती रही और हम एक दूसरे को धीरे धीरे जानते रहे, एक दूसरे के बारे में। मैं एक चीज़ कहना चाहूँगा कि मैं अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताता हूँ। औरत को मिलके उसके सामने बैठ के उसको जो पूछना होता है पूछ लेती है। क्यूंकि तब वो खुद ही देख रही होती है अपने आँखों के सामने सब कुछ … झूठ की गुंजाइश न के बराबर रहती है। कुछ दिनों के बाद जब उन्हें धुंधला धुंधला यकीन होने लगा तो हमने असली में मिलने का तय किया।

वो मेरे ही शहर कानपुर की थी और बाद में पता चला कि मेरे ही घर के करीब रहती थी वो। हमने रेव3 मॉल में एक रेस्तराँ में मिलने का समय और तारीख तय करी। हालांकि अभी तक हम लोगों ने एक दूसरे को देखा तक नहीं था।

एक शादीशुदा औरत को समाज में इज्ज़त की कितनी ज़रूरत होती है, यह या तो वो खुद समझ सकती है या कुछ समझदार मर्द। बस नंबर था हमारा एक दूसरे के पास जो हम मिलने वाले दिन सुबह दस बजे के बाद ही मिला सकते थे।

खैर वो दिन आया और हमने बात की फ़ोन पे। बहुत प्यारी धीमी आवाज़ थी उसकी। एक ऐसी आवाज़ जिसको सुनो तो बस सुनते ही रहने का मन करे।

मैंने उन्हें बताया कि मैं फलां रेस्तरां में बैठा हूँ। मैंने उन्हें अपनी वेशभूषा बताई ताकि वो मुझे पहचान सकें।
उन्होंने बोला कि वो अपनी गाड़ी को पार्क करके आ रही हैं।

वो रेस्तरां के बाहर आकर कुछ देर मुझे बाहर से ही ढूँढने लगी। उन्होंने मुझे देखा और दस सेकंड के लिए रुकी रही। शायद वो हिचक थी उनके अंदर किसी दूसरे अजनबी मर्द से मिलने की। मैंने भी उन्हें ज्यादा नहीं देखा और सोचने समझने का वक़्त दिया।
खैर वो अन्दर आई और मैंने खड़े होकर उनका स्वागत किया। उनके चेहरे की बिखरती मुस्कान ने उनकी खूबसूरती को दस गुना बढ़ा दिया था। वाकई में एक मुस्कुराती हुई महिला को मुस्कुराते हुए देखने से ज्यादा सुकून भरा शायद ही कुछ हो सकता है।

आये अब गरिमा का परिचय करता हूँ। वो बिलकुल वैसी ही थी जैसा उन्होंने अपने बारे में परिचय दिया था। खूबसूरत प्यारा चेहरा, बच्ची जैसी मुस्कान, लम्बे गांड तक के बाल। 34बी-32-36 का फिगर जो मुझे बाद में पता चला। वो काफी नाज़ुक महिला थी।

अब थोड़ा अपने बारे में जानकारी देता हूँ। मैं एक ऐसा मर्द हूँ जिसको हक जताना पसंद है। पता नहीं ये चीज़ कितनों को बुरी लगेगी मेरे बारे में पर ये सच है कि मुझे औरत को गुलाम बना के रखने में अच्छा लगता हैं। वो मेरे इशारों पे ज़िन्दगी जिये, यही मैं चाहता हूँ। मुझे चुदाई में दर्द देना पसंद है। उन पे आक्रामक रुख रखना, हल्की हल्की बातों पे डांटना और मारना, एक रखैल की तरह रखना।
ये सब जानकारी मैंने पहले ही गरिमा को दे दी थी ताकि बाद में उन्हें मेरा नेचर जान के अफ़सोस न हो। लेकिन उन्हें मेरा स्वभाव पसंद आया। बहुत ही कम महिला ऐसे ज़लील होके रहना पसंद करती हैं वर्ना औरतों को इज्ज़त लेकर रहना पसंद होता है।

खैर अब वापस कहानी पे आते हैं। हम साथ उठ कर गए, वो मेरे आगे काली चमकीली साड़ी में थी। लाल बॉर्डर और ऊपर से सुर्ख लाल हो, हाथों में लाल और काली नेलपोलिश, लंड का सलामी देना तो वाजिब था।
मैं खड़ा लंड उनकी गांड में चिपका के आर्डर देने लगा। उन्होंने आश्चर्य से पीछे देखा और अपनी मुस्कान बिखेर कर वापस आर्डर करने लगी खाना। जब हम वापस मेज पे आये तो मैंने उनके लिए कुर्सी पीछे करके उन्हें बैठाया.

वो बैठते ही मुझसे पूछ पड़ी- कुनाल जी, आपने जैसा अपना व्यवहार बताया था आप तो बिल्कुल उसके विपरीत निकले।
मैं बस मुस्कुरा के शांत रहा। थोड़ा रहस्य भी ज़रूरी है एक औरत को उत्तेजित रखने के लिए।

अब उन्होंने मुझसे पूछा कि वो मेरे को कैसी लगी.
मैं ज्यादा तारीफ नहीं करता औरत की तो बस इतना बोला- जैसा आपने खुद को फोन पे बोला था आप वैसी ही हैं.
वो उत्सुकता उसके चेहरे से चली गयी और उसे लगा कि वो मुझे पसंद नहीं आई।

और बातें हुई … मैं आँखों आँखों से उसके दर्द सहने की क्षमता को देख महसूस करना चाहता था। मैंने ये तय कर लिया था कि इनके दर्द धीरे धीरे बढ़ाना है। एक बार में ही जम कर चोद दिया तो वापस कभी नहीं आएगी। इनको मेरे द्वारा दिए गए दर्द की लत लगवानी थी।

लेकिन वो बोलती रही, मैंने उनकी आधी सुनी, आधी हम्म हम्म करके निकाल दी। मुझे ज्यादा बात करनी ही नहीं थी क्यूंकि मुझे पता था कि इनको कैसे रखना है। कुछ चीजें ख़ास थी गरिमा में। पहली कि उनका पति पुणे में रह कर जॉब करता था तो पैसे की कमी नहीं थी।
दूसरी, वो चुदी नहीं होगी बहुत टाइम से तो चुदासी होना लाज़मी है।
तीसरी, वो कानपुर में अकेली रहती थी तो जगह ढूंढना भी मुश्किल न था। न ही होटल का खर्च और न ही कोई डर कि अगर कोई मिलने वाला मिल गया तो क्या जवाब दूंगा उसको।

हमने बर्गर कोल्ड ड्रिंक खाया पिया और बाहर आये। अब मैंने उसको आजमाने की सोची की इस औरत में चुदने का गूदा है भी या नहीं। मैंने दो आइसक्रीम सोफ्टी ली और उसपे चॉकलेट गिरवा दी। एक उनको दी और बोला- गरिमा इसको ऐसे चाटो और खाओ जैसे मेरे लंड को चाटोगी पहली बार।
वो थोड़ा शरमाई पर फिर उन्होंने पूरी जीभ निकाल कर बहुत ही मस्त तरीके से चाटी आइसक्रीम।

सच में दोस्तो, लंड टुनटुना गया था तब।

अब मैंने उनको बोला- थोड़ी आइसक्रीम अपने सीने पे गिराओ और उसको वहीं पड़ी रहने दो ताकि वो रिस के तुम्हारे मम्मो में चली जाए।
वो बोली- पागल हो, सब हैं इधर, मैं नहीं करुँगी।
मैं गुस्से से तन्ना गया और जाने लगा।

लेकिन तुरंत ही उसने मेरा हाथ पकड़ा और प्यार से बोली- करती हूँ बाबा, रुको।
मैंने गुस्से से उसका मुंह पकड़ा और कहा- मुझे न सुन्ना पसंद नहीं है।
और फिर झटके से छोड़ दिया।

उन्होंने आइसक्रीम गिराई और फिर पौंछने ही जा रही थी कि मैंने उनका हाथ पकड़ कर रोक दिया। उन्होंने मुझे घूरा और फिर मुस्कुरा दी और बोली- तुम तो सबके सामने ही ये सब कर रहे हो, लगता हैं रंडी ही बना के छोड़ोगे मुझे।
मैंने कहा- आज से तेरी ट्रेनिंग शुरू!
और फिर हम दोनों हँस दिए।

थोड़ी देर बाद मुलाक़ात ख़त्म होने का वक़्त आया। तभी उसने मुझे कान के पास आकर कहा- मैं अभी ही गीली हो गयी हूँ।
मैं मुस्कुरा के आगे चला गया। मैंने उसको बाय किया और बाइक लेने चला गया। वो अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गयी।

शाम के चार बजे थे कि अचानक मेरे फ़ोन पे मेसेज आया- कुनाल जी, आप बहुत अजीब हैं, न ठीक से बाय किया, न गाड़ी तक छोड़ने आये? और मर्द तो मुझसे चिपकने का बहाना ढूंढते हैं कि कब मौका मिले और वो मुझे रगड़ के निकले या मेरे मम्मे मसल दें … पर आपने ऐसा कुछ नहीं किया। मेरे दिमाग में आपसे जुदा होने के बाद यही सब चल रहा था तो सोचा बोल दूं।
मैंने जवाब में उनसे बस यह पूछा- मुलाक़ात कैसी रही?
गरिमा का मेसेज आया- पहली ही मुलाक़ात में बिना कुछ ज्यादा किये पानी निकाल दिया और पूछ रहे हैं मुलाक़ात कैसी रही? आपकी वजह से बहुत दिनों बाद आज इतना पानी निकला है। चड्डी बहुत देर तक गीली रही है।

मेसेज देख के मैंने फ़ोन रख दिया, रात को सोते समय मैंने उसको सुबह 11 बजे का समय दिया मिलने का। मैंने उसके घर पे मिलने का बोला। वो अकेले ही रहती थी तो उसे कोई दिक्कत नहीं थी। वैसे भी आजकल के व्यस्त माहौल में किसी को कहाँ इतना समय हैं कि कौन किसके यहाँ यहाँ आ रहा हैं और कौन किसके यहाँ जा रहा है।
उसने भी ओके और गुड नाईट लिख के भेज दिया।

अगले दिन मैंने उसके घर के बारे में पूछा तो उसने अच्छे से पता बताया अपना और मैं कुछ ही देर में वहां पहुँच गया। मैंने बाहर से उसको कॉल किया तो उसने बोला- दरवाज़ा आपके ही लिए खोल रखा है, आप अन्दर आ जाएँ।

जैसे ही मैं अन्दर गया, उसने खड़े होकर मेरा स्वागत किया। वो एक नीले रंग की ढीली ड्रेस पहने हुई थी। मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की और एक पन्ना दे दिया जिसपे कुछ समान की और उसे सामान लाने के बाद एक जगह खड़ा होने को बोल दिया।
उसने मुड़ा पन्ना खोला और पढ़ना शुरू किया। एक काला टेप, एक छोटी रस्सी जिससे हाथ बांधे जा सके। सामान ज्यादा नहीं था क्यूंकि मैं सिर्फ आधे-एक घंटे के लिए ही आया था।

वो एक छोटी बच्ची की तरह उछालते हुए सामान लाने को भागी और ला कर मेरे हाथ में थमा दिया। मैंने मुस्कुरा के वो सामान लिया। मुझे मुस्कुराता देख वो बहुत खुश हुई और अपनी जगह पे जाके खड़ी हो गयी।

मैं भी कुछ सामान लाया था अपने साथ। मैं उसके बेडरूम की तरफ बढ़ा और फिर थोड़ा अपना काम करके दूसरे कमरे में चला गया। गरिमा का घर काफी बड़ा था। मैंने दूसरे कमरे में जाके उसको बेडरूम में आने को बोला। इन सब में कुछ दस मिनट गुज़र गए थे।

जैसे ही वो कमरे में घुसी तो उसे ज़मीन पे एक मुड़ा हुआ कागज़ दिखाई दिया। उसने झुक के उसे उठा के पढ़ा- कपड़े उतार कर ब्रा-चड्डी में आ जाओ, उन दो निशान पर जो मैंने काले रंग के टेप से बनाये हैं उन पे जाके चुपचाप खड़ी हो जाओ और दोनों हाथ पीछे कर लो।

उसको एक तीसरा निशान भी दिखा पर वो कुछ समझी नहीं और चुपचाप ब्रा-चड्डी में उस निशान पे जाके खड़ी हो गयी। उसने दोनों हाथ पीछे कर लिए थे।

एक मिनट बाद मैं कमरे में पहुँचा और मैंने आहिस्ता से उसके दोनों हाथ बाँध दिए। फिर उसके आँखों पे काली पट्टी बांध दी। वो ब्रा-चड्डी में बहुत सेक्सी लग रही थी। कोरा बदन और उस पे कमर की लचक किसी की भी नियत ख़राब कर दे।

फिर मैंने उसको घुटनों पे बैठने को बोला और आगे की तरफ झुका के उसका मुंह उस तीसरे निशान पे रख दिया। उसकी गांड उठ गयी थी ऐसे बैठे होने के कारण। फिर मैं दूसरे कमरे में कुर्सी डाल के उसको देखने लगा। शायद वो मेरे जूतों के हील की आवाज़ को सुनके समझ गयी थी। मैंने उसे इंतज़ार करवाया। अजीब सी बेचैनी और ख़ुशी थी उसके अन्दर क्यूंकि उसे पता नहीं था कि अगले पल उसके साथ क्या होने वाला हैं।

पांच मिनट बीत गए … दस मिनट में वो बिल्कुल पागल सी हो गयी थी, कभी अपने होंठ काटती तो कभी अपने मम्मे ज़मीन से रगडती। ज्यादा हिलने की इज़ाज़त नहीं थी उसे और न ही ज्यादा बोलने की।

पंद्रह मिनट में उसका बदन आग सा जलने लगा था। बहुत शान्ति से देख रहा था मैं उसको। कोई खट-पट नहीं। पंद्रह मिनट बाद मैं उठा। किचन से पानी लेकर वापस आया। हर कदम तेज़ होती जूतों की आवाज़ से उसके चेहरे पे मुस्कान बिखर जाती।

मैं उसके पास गया और मोर का पंख जो मैं लाया था हल्का सा उसके बदन पे सहलाया। उसकी एक प्यारी सी सिसकी निकली, बोली- कुनाल अब मत जाना छोड़ के।
फिर मैंने अपने बैग से हंटर निकाल के उसकी गांड पे मारा। एक दर्द भरी आह के साथ उसकी चूत का रस छूट गया और उसकी चड्डी भरपूर रूप से गीली हो गयी। उसकी चड्डी को देख के कोई भी कह सकता था कि उसने मूता होगा क्यूंकि इतना पानी शायद ही कोई औरत छोड़ती होगी।

फिर मैंने उसको खड़ा किया, उसके हाथ खोले। आँख से पट्टी हटाई और फिर अपना सामान लेकर चल दिया। उसके चेहरे पे अचानक से एक टेंशन का भाव आया और उसने दौड़ते हुए मुझे रोकने की नाकाबिल कोशिश की। जितनी देर में वो मुझे रोक पाती उतनी देर में मैं उसके घर से निकल चुका था।

वो ब्रा-चड्डी में थी तो बाहर आकर रोक भी नहीं सकती थी। एक उदास मन से वो उधर ही रुक गयी और मैं निकल गया। कुछ ऐसी थी हमारी पहली मुलाक़ात उसके घर पे।

उसका उस दिन कोई मेसेज नहीं आया।
रात में मेसेज पे कुछ नार्मल बातें हुई जिसमें वो कुछ उखड़ी हुई लगी। मैंने उसको ज्यादा मनाया नहीं और अगले दिन आने का बताया उसको।

मुझे उसके यहाँ ग्यारह बजे पहुँचना था लेकिन मैं उसके यहाँ दस बजे ही पहुँच गया। मैंने उसके घर की घंटी बजाई तो वो दरवाजा खोलते हुए ही बोली- आप तो ग्यारह बजे आने वाले थे न, फिर जल्दी कैसे?
मैंने उसकी आँखों में मुस्कुराते हुए देखते हुए अन्दर आने को बोला।

जैसे ही वो दरवाज़ा बंद करके मुड़ी। मैंने उसका मुंह पकड़ के उसके लबों को चूमना चालू कर दिया। पहले तो वो थोड़ा घबरायी फिर मेरा साथ देने लगी। वो मेरे इस बदले हुए अंदाज़ को समझ नहीं पायी थी। आज मैं उसे चोदने के मकसद से आया था। रोज़ रोज़ कड़क व्यवहार करने से उसका लगाव मेरे से कम भी हो सकता था। मैं ये आप सबसे कहना चाहता हूँ कि औरत के साथ हमेशा एक जैसा व्यवहार मत कीजिये। अगर आप मेरे जैसे मिजाज़ के हैं तो कभी कबार उससे प्यार से भी पेश आये। अगर आप एक जैसा ही व्यवहार करेंगे तो आपकी ज़िन्दगी में बोरियत आना आम बात हैं। ज़िन्दगी को रोचक बनाये रखें।

वापस कहानी पे आते हैं। मैंने उसके लबों को तसल्ली से चूसा। उसके होंठों को काटते हुए उसके मम्मे बेदर्दी से मसले। उसके कटे हुए होंठों से आते हुए खून को मैं पी गया। चूमते हुए उसके कपड़े उतारे और उसको ब्रा-चड्डी में लाके गोदी में उठा के उसको उसके बेडरूम में ले जाके उसके बिस्तर पे पटक दिया।

वो काफी चुदासी हो गयी थी। मैंने बिस्तर से उसके हाथ पैर बाँध दिए। अब मैं फ्रिज से बर्फ के कुछ टुकड़े ले आया। मैंने एक टुकड़ा लिया और मुंह में दबाया। मैंने उसी बर्फ के टुकड़े को लिए हुए अपने होंठों से उसको चुसवाया और फिर बर्फ को उसकी गर्दन से फिसलाते हुए उसके मम्मे और निप्पल पे रगड़ा। फिर वो सरकाते हुए उसकी नाभि पे लाया और फिर वो टुकड़ा उसकी चड्डी के ऊपर से ही चूत पे रगड़ने लगा।

वो बर्फ ख़त्म हुई तो और बर्फ उठाई और उसके मुंह में डाली, कुछ ब्रा में घुसा दी। एक टुकड़ा नाभि पे रख दिया। तीन टुकड़ा बर्फ उसकी चूत में घुसा दी और दूर बैठ कर बर्फ पिघलने का इंतज़ार करने लगा।

फिर मैंने उसके पैर के तलवे को चूमना चालू किया। चूमते हुए ऊपर आया उसकी जांघ की तरफ। चूमते हुए मैंने उसकी ब्रा-चड्डी उतार के उसको पूरी तरह नंगी कर दिया। अब मैंने उसकी चूत के आस पास चूमना चालू किया।

आखिर में मैंने उसकी चूत को चूमा। उसकी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंजने लगी। अब मैंने चाटना शुरू किया। हल्का हल्का खाने लगा उसको। जैसे ही मुझे लगा कि अगले पल वो झड़ने वाली है, मैं झट से अलग हो गया।
वो बिन पानी जैसी मछली की तरह मचल गयी, अपनी चूत चाटने की गुहार लगाती रही।

पर मैंने उसे ठंडा होने दिया।

फिर दोबारा मैंने उसकी चूत को खाना शुरू किया। पर इस बार ज्यादा जोर से … मम्मे दबाते हुए बेदर्दी से। निप्पल निम्बू की तरह निचोड़ रहा था मैं उसके। खूब गहराई तक मुंह घुसा के चाटता चूसता। कभी कभी दांत से भी काट लेता उसको।

दूसरी बार भी जैसे ही वो झड़ने को हुई मैं अलग हो गया उससे। वो फिफक फिफक कर रो पड़ी। एक गुहार थी उसकी जुबान पे जो मैं मुस्कुरा के अनदेखा कर रहा था।

दस मिनट रुकने के बाद जैसे ही मैंने उसकी चूत पे मुंह रखा। उसने पानी की वर्षा चालू कर दी। मेरा मुंह पूरी तरह से भीग चुका था। अब मैंने उसके हाथ पैर खोल दिए, आँख से पट्टी भी हटा दी और उसके लबों को चूसने लगा।

मैंने अपना लंड उसकी चूत पे रखते हुए धीरे धीरे अन्दर किया। बहुत ही आराम से मैंने उसको आधे घंटे तक चोदा। अभी तक मैंने अपने जानवार को दबा के रखा हुआ था अपने अन्दर। पर वो धीरे धीरे बाहर आने की कोशिश कर रहा था जो मैं आज नहीं चाहता था।

गरिमा इसी बीच दो बार झड़ चुकी थी। मैं चोदते वक़्त पानी पीता हूँ और गरिमा को भी मैंने अच्छी मात्रा में पानी पिला रखा था। कुछ देर में मैं भी झड़ गया और गरिमा को एक तरफ फेंकते हुए मैं बेड पर लेट गया।

कुछ देर में लंड फिर गरिमा की जवानी को सलामी देने लगा तो मैंने उसको पलट के कुतिया बना दिया। मैं जब भी चुदाई करता हूँ, चूत और गांड दोनों चोदता हूँ। गांड चोदन के बिना मुझे चुदाई अधूरी लगती है।

मैंने उसकी गांड पे लंड टिकाया और उसकी गांड पकड़ के एक बार में पूरा अन्दर डाल दिया। उसके बिस्तर के चारों ओर शीशा लगा होने के कारण मुझे उसके चेहरे पे बेहिसाब दर्द देखने का आनंद प्राप्त हुआ। लेकिन वो चिल्लाई नहीं थी, बस अपने अन्दर एक दर्द दबा के रह गयी थी, उसके आंसू सब बयाँ कर रहे थे।

मैं बेदर्दी से उसकी गांड मारता रहा। मैंने उसको अपना फ़ोन का कैमरा चालू करके पकड़ा दिया ताकि वो हमारी चुदाई यादगार रहे। मैं पूरा लंड निकालता और एक झटके में पेल देता पूरा अन्दर। एक हाथ से उसकी गांड पे मार मार के लाल कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके बाल खींच कर उसको दर्द दे रहा था।
उसकी वो आवाज़ आज भी मेरे दिमाग में हैं- आह्ह बाल नहीं प्लीज, बाल छोड़ो आह्ह बाल नहीं।

पर मैंने उसकी एक न सुनते हुए उसको पेलना जारी रखा। वो दो बार झड़ने के बाद शांत सी हो गयी थी। मैं भी कुछ देर बाद उसकी गांड में झड़ गया। चूत और गांड में रस डालने का मज़ा ही कुछ और है।

मैंने उस कुतिया को बिस्तर के किनारे फेंका और कपड़े पहन कर निकल दिया। यूँ समाप्त हुई हमारी दूसरी मुलाक़ात।

मैं अपनी कहानी को यही समाप्त करूँगा। लोगों को लगता होगा कि मैं औरत को प्यार करना नहीं जानता। पर दोस्तो, अभी मैंने उसको असली दर्द दिया ही कहाँ था जो प्यार करता उसको।

खैर, आप अपने सुझाव लिख के भेजना न भूले। अगर आप लोग इसके आगे की मुलाक़ात के बारे में जानना चाहते हैं तो मुझे मेल करके अवश्य बताइयेगा क्यूंकि आपकी ख़ुशी ही मुझे आगे लिखने की प्रेरणा देगी। आगे की कहानी में दर्द और प्यार दोनों हो ज्यादा होगा।

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