दोस्तो! मेरा नाम सुमित है और मैं 22 साल का हूँ. मेरा लंड 7 इंच लम्बा और 2.5 इंच मोटा है. मैं बिहार राज्य के दरभंगा जिले का रहने वाला हूँ. अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज़ पर यह मेरी पहली कहानी है. मुझे उम्मीद है कि आप लोगों को यह कहानी पसंद आएगी. यह सच्ची कहानी है जिसमें मैं आपको बताऊंगा कि कैसे मैंने अपनी माँ को मेरी रंडी बनाया.
तो ज्यादा समय न गंवाते हुए मैं सीधे कहानी पर आता हूँ.
बात उन दिनों की है जब मैं बारहवीं कक्षा में था और मेरी उम्र 18 साल को पार कर चुकी थी. घर में हम तीन सदस्य हैं. मेरी मम्मी मीता देवी, मेरे पापा और मैं.
मेरी मम्मी की उम्र 37 वर्ष है और मेरे पापा 41 साल के हैं. पापा कपड़े की दुकान में काम करते हैं. उनकी दुकान बनारस में है और अधिकतर घर से बाहर ही रहते हैं। मेरी मम्मी का साइज़ 36-34-38 है। वह एक बहुत ही सुन्दर औरत है. देखने में बहुत ही सेक्सी है. वह किसी भी बुड्ढे या जवान का लंड खड़ा करवा सकती है।
एक बार जब मैं कॉलेज से घर आया तो देखा कि पापा मेरी मम्मी को बोल रहे थे कि काम का भार उन पर कुछ ज्यादा आ गया है तो इस बार वो घर 2-3 महीने के बाद ही आ पाएंगे. यह सुनकर मेरा भी मुंह उतर गया क्योंकि मैं भी चाहता था कि पापा कुछ दिन और यहाँ रुकें.
खैर उनकी रात की ट्रेन थी तो वो खाना-वाना पैक करके 7 बजे के आसपास निकल गए.
माँ इस बात से नाराज़ लग रही थी कि अब उनकी चुदाई कौन करेगा. इसलिए जब से पापा ने कई महीने बाद आने की बात कही थी तो उसके बाद से ही उनका मुंह भी उतरा हुआ लग रहा था.
मेरी मम्मी एक नम्बर की चुदक्कड़ औरत थी. मैं बहुत बार नोटिस करता था कि जब वो कोई सामान खरीदने कहीं बाहर या मार्किट जाती थी तो अपनी गांड खूब हिलाती थी और लोग भी मेरी माँ को देखकर अपना लंड सहलाते थे और मेरी माँ को ऐसी नज़रों से देखते थे कि कच्चा ही खा जाएंगे.
जिस दिन पापा गए थे उस दिन माँ का मूड काफी उदास था. उनके जाने के बाद मम्मी अपने रूम में बिल्कुल उदास बैठी थी. न कुछ बोल रही थी और न ही कुछ काम कर रही थी.
कुछ देर बाद मैं उनके कमरे में गया तो उन्होंने मुझे देखकर पूछा- बेटा क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं.
“आपको क्या हुआ?” मैंने पूछा.
तो मम्मी कुछ नहीं बोली पर मैं समझ गया कि बात क्या है.
फिर माँ किचन में खाना बनाने चली गई. मैंने भी किचन में माँ की मदद करने की सोची और किचन में चला गया. वहां पर जाकर देखा तो माँ किचन में सब्जियाँ काटने के लिए ला रही थी. माँ सब्जियों में रखे बैंगन और मूलियों को बड़े ही ध्यान से देख रही थी. जैसे उनसे कुछ बात कर रही हो.
मैं समझ नहीं पा रहा था कि माँ यहाँ सब्जी बनाने आई है या सब्जियों को देखने आई है. मैंने टमाटर उठाकर काटना शुरू कर दिए. फिर माँ ने जल्दी ही सब्जी और रोटी बना दी. खाना बनकर तैयार हो गया.
कुछ देर बाद मम्मी ने खाना लगाया और मेरे साथ ही बैठ कर खाने लगी। खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने चला गया. मैं मम्मी को ऐसे उदास देखकर उदास हो गया था लेकिन किया भी क्या जा सकता था. पति तो आखिर पति ही होता है. यहीं बातें सोचते-सोचते मेरे दिमाग में सेक्स के ख्याल आना शुरू हो गए. मैंने सेक्स स्टोरी साइट खोली और सेक्सी कहानियाँ पढ़ने लगा.
कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा लंड तनकर तंबू हो गया था. मैंने अपने लंड को अपने पजामे के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया. मेरी उत्तेजना हर पल बढ़ती जा रही थी. फिर एक माँ-बेटे की कहानी पर मेरी नज़र चली गई. मैं उस कहानी को पढ़ने लगा.
फिर मेरे मन में मेरी माँ के ही ख्याल आना शुरू हो गए क्योंकि उसमें जिस तरह की औरत का ज़िक्र किया गया था, मेरी माँ बिल्कुल वैसी ही थी. मेरा मन कर रहा था कि अपनी मम्मी को ही चोद दूँ. मैं मम्मी के बारे में सोच-सोचकर मुट्ठ मारने लगा.
मैं बहुत ही उत्तेजित हो चुका था. वह सेक्सी स्टोरी पढ़ते-पढ़ते मेरा गला सूखने लगा था. मैं अपने खड़े लंड के साथ किचन में पानी पीने चला गया. रात का टाइम था और घर में मेरे और माँ के अलावा कोई भी नहीं था.
मैंने सोचा कि माँ तो सो चुकी होगी. इसलिए मैं अपने तने हुए तंबू के साथ किचन की तरफ चला जा रहा था.
मेरा रूम और मम्मी का रूम दूर-दूर थे. बीच में किचन बना हुआ था जिससे सटकर एक आँगन था. मैं किचन में पानी पीने के लिए जा ही रहा था कि मेरी किचन की खिड़की पर पड़ी. किचन की खिड़की में एक प्लास्टिक लगा हुआ है वाइट कलर का, जिससे रात में अन्दर लाइट रहने पर अन्दर (किचन) का सब दिखता है और बाहर का कुछ नहीं दिखता.. मैं जैसे ही खिड़की के पास से गुज़रा तो अन्दर का नज़ारा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी।
मैंने देखा कि मम्मी किचन में पूरी नंगी खड़ी थीं। उनके 36 इंच के तने हुए चूचे तनाव में बाहर की तरफ निकले हुए थे. देखते ही मेरा लंड फनफना उठा और मैं धीरे-धीरे मम्मी को देखते हुए लंड सहलाने लगा.
मैं चुपके-चुपके मम्मी को देख रहा था, उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था. कितनी कमसिन और सुन्दर चूत थी मेरी मम्मी की। मैं सोचने लगा कि आख़िर मम्मी नंगी होकर किचन में कर क्या रही है?
2-3 मिनट बाद मैंने देखा कि उन्होंने रैक से कुछ सब्जियाँ बाहर निकालते हुए उनमें से बड़े- बड़े बैंगन और मूली अलग कर लीं. फिर उन्होंने एक बैंगन को अपनी चूचियों के बीच से रगड़ते हुए मुंह में लिया और चूसने लगी.
उनके मुंह से साथ ही कुछ इस तरह की आवाज़ें भी निकल रही थीं- उम्म उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआह्हह!
मुझे यह सब देखकर बड़ा मज़ा आ रहा था. मैंने सोचा कि यही सही मौका है. मैं सोच रहा था कि अपना लंड हाथ में लेकर उनके सामने जाकर खड़ा हो जाऊं मगर फिर मैंने सोचा इतनी जल्दी क्या है, यहीं खड़ा रहकर देखता हूँ कि और क्या-क्या करती है मेरी चुदक्कड़ माँ!
कुछ देर तक बैंगन को चूसने के बाद वह 3 बड़े-बड़े बैंगन और एक मूली लेकर अपने रूम की तरफ जाने लगी. मैं भी धीरे-धीरे उनके पीछे उनके रूम तक पहुंच गया. रूम के पास जाकर दीवार में बने एक छेद से देखने लगा, वो नंगी बिल्कुल मेरी आँखों के सामने अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और अपनी जांघ ऊपर करके बैंगन को मुंह में लेके चूस रही थी.
फिर वह एक बैंगन को अपनी चूत में डालने लगी और एक हाथ से अपनी चूचियों को दबाने लगी। बैंगन लगभग 8 इंच का था इसलिए उन्होंने थोड़ा सा ही अन्दर लिया और उसको अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने लगी साथ ही मादक सिसकारियाँ निकालने लगी. उम्म्म आआह्ह्ह्ह उम्म्म्म स्स्स्स मेरी चूत उम्म्म्म!
ऐसी पागल और मदहोश कर देने वाली आवाज़ें मुझे पागल कर रहीं थी और मेरा लंड भी अपनी चरम सीमा पर था. मैंने अब खुद से कहा कि बस बहुत हुआ, अब और बर्दाश्त नहीं किया जा रहा, यह सोचकर मैं सीधा मम्मी के रूम में घुस गया.
मम्मी मुझे देखकर एकदम से चौंक गयी और किसी तरह अपने स्तनों और चूत को हाथ से ढकने लगी मगर उनकी चूत में फंसा हुआ बैंगन थोड़ा बाहर निकला हुआ था. मैंने मम्मी से कहा- मैं आपकी ज़रूरत पूरी कर सकता हूँ.
कहकर मैंने अपना लंड मम्मी के हाथ में दे दिया.
मम्मी एकदम से डर गयी और मेरे लंड को देखकर बोली- इतना बड़ा कब हुआ?
मैंने कहा- रोज़ मुट्ठ मारता हूँ इसीलिए बस अब आपको चोद-चोद कर अपनी प्यास बुझाना चाहता हूँ.
मम्मी मेरी तरफ हैरानी से देख रही थी फिर कुछ सोचकर बोली कि इस बात का पता किसी को नहीं चलना चाहिए.
मैंने कहा- नहीं चलेगा किसी को पता. बस अब मैं आपकी चूत में अपना लंड डालना चाहता हूँ.
फिर एकदम उन्होंने मेरा लंड मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया. मैं उनके बूब्स को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था और वह मेरा लंड मुंह में लेकर बड़े ही मज़े के साथ चूस रही थी. उम्म्म उम्म्म्म आह्ह्ह्ह उम्म्म्म स्स्स्सस उम्म्मम उम्म उम्म्म. मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था।
5-6 मिनट चूसा-चूसी का खेल चला उसके बाद मम्मी ने अपनी चूत से बैंगन को निकाल लिया और पूछा कि मेरी चूत मारना चाहता है क्या?
मैंने कहा- फिर मैं इतनी देर से आपके साथ क्या लूडो खेलने के लिए खड़ा था?
मम्मी ने कहा- ठीक है, मगर उससे पहले मैं तेरी गांड में बैंगन डालूंगी.
मैं थोड़ा डर गया लेकिन फिर पूछा- बैंगन गांड में डालने से क्या मतलब है?
मम्मी ने कहा- मुझे अच्छा लगता है.
मैंने फिर पूछा- आपने पहले भी कभी ऐसा किया है क्या?
माँ ने कहा- हां, तेरे मामा जब आते थे तो उनके साथ करती थी.
मैंने हैरानी से कहा- तो क्या आपने मामा के साथ भी चुदाई करवा रखी है?
माँ ने कहा- बेटा, चूत की प्यास एक लंड से नहीं बुझती. इसको 2-3 लंड तो कम से कम चाहिए ही. जब तेरे मामा आते थे तो उनका लंड लेने से पहले भी मैं उनकी गांड के साथ खेलती थी. मुझे मर्दों की गांड के साथ खेलना बहुत पसंद है.
“तुझे भी मज़ा आएगा, एक बार करवा कर देख!” माँ ने कामुक आवाज़ में मुझसे कहा.
मैंने कहा- ठीक है. आपको जो करना है जल्दी कर लो. मेरा मज़ा ख़राब मत करो अब. देखो, आपकी बातों के चक्कर में मेरा लंड वापस सोने लगा है.
माँ ने कहा- लंड की चिंता मत कर तू. लंड तो ऐसा निचोड़ लूँगी मैं कि कई दिन तक पड़ा ही रहेगा.
मैंने मन ही मन कहा- हां, वो तो मुझे पता है मेरी चुदक्कड़ माँ.
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फिर माँ ने बैंगन उठाया और उसको प्यार से सहलाने लगी. माँ उस बैंगन को ऐसे प्यार कर रही थी जैसे कोई लंड हाथ में ले रखा हो.
माँ ने कहा- झुका जा मेरे सामने आकर.
मैंने ऐसा ही किया. मैं बेड पर जाकर माँ के सामने घोड़े की पॉजिशन में झुक गया.
माँ ने बैंगन लिया और मेरी गांड में डालने लगी. मुझे दर्द होने लगा और माँ को मज़ा आ रहा था. कुछ देर तक माँ ने मेरी गांड में बैंगन को अंदर-बाहर किया और फिर उसको निकाल कर चाट गई. वैसे तो बैंगन गांड में डलवाने के बाद मुझे भी मज़ा आ रहा था लेकिन मेरा लंड सो गया था.
फिर माँ ने कहा- बस अब तेरी बारी. फिर मैंने माँ की चूत को चाटना शुरू कर दिया और माँ कामुक सिसकारियाँ लेने लगी. ओह्ह्ह्…हाँ, ऐसे ही करता रह बेटा…मज़ा आ रहा है..फिर मैंने और ज़ोर से माँ की चूत में जीभ डालनी शुरू कर दी तो माँ पागल सी होने लगी.
मुझसे कहने लगी- बस अब चोद दे मुझे, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है.
इतना सुनने के बाद मैं भी जोश में आ गया और उनके दोनों पैरों को फैला कर अपना लंड उनकी चूत पर रख दिया. चूत इतनी गीली थी कि लंड तुरंत ही अन्दर घुस गया और मैं धक्के मारने लगा.
“ह्ह्ह्ह अह्ह ह्ह्ह ह्ह्ह हहुह ह्ह्ह्ह” वो भी चिल्ला रही थी- हां बेटा चोद.. आःह्हा हह्हह्ह अहह्ह्ह्हा उम्म्म्म ऊऊऊह्ह्ह…
करीब 10 मिनट धक्के मारने के बाद मैंने अपना माल माँ की चूत में ही छोड़ दिया.
माँ भी झड़ चुकी थी.
दोनों एक दूसरे के ऊपर नंगे पड़े थे. मैं अभी भी माँ की चूचियों को दबा रहा था.
माँ बोली- बेटा, तू तो बड़ा अच्छा चोदता है.
मैंने कहा- तुम भी कम नहीं हो मेरी रंडी.
वह बोली- हाँ, मैं तेरी रंडी हूँ. आज से तू मुझे रंडी कहकर ही बुलाना.
फिर माँ मुझे चूमने लगी. उस रात मैंने माँ को 4 बार चोदा और तब से रोज़ चोदता हूँ. घर में जो मज़ा आता है यारो… वह कहीं और मुझे नहीं आता. कभी भी गांड छूना, चूत मसलना, बूब्स दबाना … ओह जन्नत है … इसलिए अब मैं बहुत खुश रहता हूँ.
जब भी मेरा लंड खड़ा होता है मैं अपनी माँ की चूत मार लेता हूँ।
मुझे माँ की चूत बहुत पसंद है. अगली बार एक और कहानी लेकर आऊंगा आपके समक्ष, तब तक के लिए लंड-चूत का प्रणाम!