कुछ इच्छाए पूरी हो गई कुछ अभी बाकि है
कहानी होती ही अतीत की है। समय का अनुमान पाठक स्वयं लगा सकते हैं। मैंने अपने बचपन का अधिकतर समय अपनी बुआ के गाँव में बिताया, लेकिन पिछले तीन वर्श से नहीं गया। उनका गाँव बहुत छोटा सा है, लेकिन हमारे फूफाजी वहाँ के सम्मानीय व्यक्ति हैं। हमारी बुआ के यहां ससुर के समय की बनाई गई लखौरी ईटों की पुरानी दो मंजिल की बड़ी सी हवेली है। गाँव के आधे से अधिक खेत और बाग उन्हीं के हैं। लेकिन अब सन्नाटा रहता है। बुआ के तीन बेटे और चार...