मेरे पिताजी मुझे बोल उठे केशव बेटा क्यो ना तुम अपनी बहन के पास कुछ दिनों के लिए चले जाओ मैंने पिता जी से कहा लेकिन मैं वहां जाकर क्या करूंगा। पिताजी कहने लगे तुम कुछ दिनों के लिए अपनी बहन के पास चले जाओगे तो क्या कुछ हो जाएगा यहां पर भी तो तुम दिन भर आवारागर्दी करते रहते हो। एकदम से पिताजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया तो मेरे पास उनकी हां में हां मिलाने के अलावा कुछ और नहीं था। मैंने उनकी बात में हां में हां मिलाई और कहा पिताजी कल चला जाऊंगा और अगले दिन मेरी मां ने मुझे सुबह नाश्ता दिया और मैं अपनी बहन के घर चला गया। मैं जब अपनी बहन से मिला तो उसे देख कर मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि उसे करीब 6 महीने बाद मैं मिल रहा था। मेरी बहन मुझे देख कर खुश हो गई वह कहने लगी चलो केशव कम से कम तुम तो मुझसे मिलने के लिए आए पिताजी और मां ने तो जब से मेरी शादी करवाई है तब से वह मुझे जैसे भूल ही गए हैं।
मैंने अपनी बहन सुनीता से कहा ऐसा कुछ नहीं है और पिताजी के बारे में तो तुम्हें पता ही है ना पिताजी छोटी छोटी बात में गुस्सा हो जाया करते हैं। मां को तो घर से फुर्सत ही नहीं मिलती और पिताजी भी अपने स्कूल से फ्री नहीं हो पाते हैं इसीलिए तो उन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है ताकि मैं देखा आऊं कि तुम कैसी हो। सुनीता मुझे कहने लगी तुमने बिलकुल ठीक किया जो मुझसे मिलने के लिए आ गए वैसे भी मैं काफी दिनों से सोच ही रही थी कि मम्मी पापा एक दिन मिलने के लिए आ जाते तो कितना अच्छा होता लेकिन तुमने बहुत अच्छा किया जो तुम मुझसे मिलने आए। मैंने सुनीता से पूछा जीजा जी कहां है वह कहने लगी जीजा जी का तो कुछ पता ही नहीं रहता वह शाम के वक्त घर लौटते हैं। मैंने सुनीता से कहा सब कुछ ठीक तो है ना सुनीता कहने लगी हां सब कुछ ठीक है लेकिन मुझे घर की बहुत याद आती है मैंने सुनीता से कहा ठीक है तुम मेरे साथ कुछ दिनों के लिए घर चल लेना। सुनीता कहने लगी ठीक है केशव मैं तुम्हारे जीजा जी से इस बारे में पूछूंगी यदि वह हां कह देंगे तो मैं तुम्हारे साथ ही कुछ दिनों के लिए घर आ जाऊंगी वैसे भी काफी दिन हो गए जब से मैं घर नहीं गयी।
जीजा जी जब शाम को आये तो वह मुझे देखते ही कहने लगे अरे केशव तुम कब आए मैंने जीजा जी से कहा जीजा जी आज ही पहुंचा हूं सोचा कि आप लोगों के हाल-चाल पूछ लूँ और दीदी से भी मिले काफी दिन हो चुके थे। जीजा जी और मैं साथ में बैठे हुए थे तो जीजा जी कहने लगे तुम आगे क्या करने वाले हो मैंने जीजा जी से कहा अभी तो मैंने कुछ नहीं सोचा है लेकिन फिलहाल तो मैं कुछ दिन घर पर ही रहना चाहता हूं। जीजा जी कहने लगे हां ठीक है वैसे भी तुम्हारी उम्र में अभी ज्यादा हुई नहीं है, तब तक सुनीता दीदी भी आई और वह जीजा जी से कहने लगी कि क्या मैं कुछ दिनों के लिए केशव के साथ अपने घर हो आऊं। जीजा जी ने भी कुछ देर सोचा और कहा ठीक है तुम कुछ दिनों के लिए चली जाओ और अगले ही दिन मैं सुनीता दीदी को अपने साथ घर ले आया और जब वह पिताजी और मां से मिली तो वह बहुत खुश हो गई। वह कहने लगी मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है वह मां के साथ बैठी हुई थी और मां के साथ ही बात कर रही थी मैंने अपनी मां से कहा कि मैं खेलने के लिए जा रहा हूं। मेरी मां कहने लगी तुम अभी तो घर आए हो और अभी से खेलने के लिए जा रहे हो यदि तुम्हारे पिताजी को पता चलेगा तो वह तुम्हें बहुत डांटेंगे। पिताजी कुछ देर के लिए अपने कमरे में गए थे लेकिन मैं भी चुपके से बाहर चला आया और वहां से मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए चला गया। जब मैं शाम को घर लौटा तो पिताजी ने मुझे डांट लगा दी और वह कहने लगे तुम कब सुधरोगे तुम्हें समझ क्यों नहीं आता कि तुम्हें कुछ कर लेना चाहिए। पिताजी मेरी हर बात से परेशान रहते थे और उन्होंने आखिरकार चाचा जी को मेरा जिम्मा सौंप दिया चाचा जी की परचून की दुकान है उनकी दुकान काफी पुरानी है तो पिताजी ने चाचा से कहकर मुझे अपने पास रखवा दिया।
मैं चाचा जी के पास ही काम करने लगा था लेकिन मेरा बिल्कुल भी मन नहीं लगता था परंतु मेरी मजबूरी थी की मुझे चाचा जी के साथ काम करना पड़ रहा था। अब मैं चाचा जी के साथ ही काम कर रहा था लेकिन मेरा बिल्कुल भी मन नहीं लगता था और मैं सोचने लगा कि क्या मुझे चाचा जी के साथ ही काम करना चाहिए। बाजार में भी मुझे सब जानने लगे थे मुझे लगने लगा कि मुझे अब चाचा जी के साथ काम नहीं करना चाहिए लेकिन पिताजी की जिद के चलते मुझे चाचा जी के साथ ही काम करना पड़ा। मैं अब चाचा जी के साथ काम तो सीख चुका था इसलिए पिताजी चाहते थे कि मैं भी अपनी दुकान खोल लूँ। कुछ ही समय बाद उन्होंने मेरे लिए एक दुकान खुलवा दी पिताजी ने ही सारे पैसे दिए थे और अब मैंने भी दुकान खोल ली थी और मैं भी अपने काम को अच्छे से करने लगा था। मैं अपनी दुकान पर पूरा ध्यान देने लगा था जिस वजह से काम भी अच्छा चलने लगा मेरे पास आस पड़ोस के लोग आने लगे थे। एक दिन जब मेरे पास रुचि आई तो उसे देख कर मुझे बहुत अच्छा लगने लगा मैंने कुछ ही दिनों बाद रुचि का नंबर ले लिया। मैंने जब रुचि का नंबर लिया तो उससे पहले कुछ दिनों तक तो मैंने मैसेज के माध्यम से बात की, फिर हम दोनों की फोन पर घंटो बात होने लगी। रुचि अभी बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा थी और वह भी मुझसे बहुत बात किया करती थी। हम लोग चोरी छुपे मिलने लगे थे परंतु जब यह बात मेरे पिताजी को पता लगी तो उन्होंने मुझे साफ शब्दों में चेतावनी दे दी और कहा कि तुम रुचि से दूर ही रहो तुम अपने काम पर ध्यान दो और अभी उस लड़की की उम्र ही क्या है यदि उसके परिवार वालों को पता चलेगा तो क्या यह सही रहेगा।
पिताजी हमेशा ही आदर्शवादी बातें किया करते थे जो कि मुझे कभी समझ ही नहीं आती थी। मैं हमेशा अपनी मर्जी से ही काम किया करता था मुझे जो ठीक लगता मैं वही करता इसलिए मैं फिर रुचि से ही बात कर रहा था और वह भी मुझसे बात करती हम दोनों एक दूसरे से फोन पर घंटो बात किया करते थे। पिताजी मुझे हमेशा ही इस बात को लेकर कहते कि तुम रुचि से दूर रहो लेकिन मुझे उनकी बातें खाने लगी थी और मैं उनकी बातों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया करता था। मेरी मां मुझे हमेशा कहती कि बेटा तुम्हारे पिताजी सही तो कह रहे हैं उस लड़की की अभी उम्र ही क्या है वह तो अभी बहुत छोटी है। मैंने मां से कहा तुम एक बात बताओ तुम्हारी शादी 21 वर्ष में हो गई थी ना, तो मां कहने लगी हां मेरी शादी 21 वर्ष में हो गई थी मैंने मां से कहा वह भी तो 21 वर्ष की ही है। हम दोनों एक दूसरे के प्यार में पागल थे। मुझे तो रुचि का साथ बहुत ही अच्छा लगता वह भी मुझसे बहुत प्यार किया करती जब हम लोगों ने एक दिन मेरी दुकान में मिलने का फैसला किया तो वह मुझे चोरी चुप दोपहर के वक्त मिलने के लिए आ गई। दोपहर में दुकान में बहुत कम भीड़ हुआ करती थी जब वह मुझसे मिलने आई तो मैंने उसे अपने पास में बैठा लिया वह मेरे पास बैठी तो मैंने उसके गुलाबी होठों को चूसना शुरू किया। वह भी मुझसे दूर ना जा पाई और वह भी मेरे होठों को चूमने लगी उसके अंदर भी जैसे एक चिंगारी पैदा हो गई थी और वह भी अपने आपको ना रोक सकी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था रुचि को भी बड़ा मजा आता काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे के होठों को किस करते रहे।
जब मेरे अंदर की उत्तेजना कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी तो वह मुझे कहने लगी मुझे तुम्हारे लंड को अपने मुंह में लेना है। मैंने उसे कहा तुम क्या बात कर रही हो तो वह कहने लगी तुम अपने लंड को बाहर निकालो। मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो उसने बड़े अच्छे तरीके से मेरे लंड का रसपान किया और जिस प्रकार से वह मेरे लंड को चूस रही थी उस से मेरा पानी बाहर आ चुका था। मैंने भी उसकी कोमल चूत पर अपनी जीभ को लगाया तो वह भी मचलने लगी और मुझे भी अच्छा लग रहा था। जिस प्रकार से मैं उसकी चूत को चाटना शुरू किया तो वह अपने आपको ज्यादा देर तक रोक ना सकी। मैंने उसके स्तनों को भी काफी देर तक चूसा उसके अंदर उत्तेजना पूरे चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी और जैसे ही मैंने रुचि की योनि के अंदर अपना लंड प्रवेश करवाया तो वह चिल्लाने लगी और उसके मुंह से बड़ी तेज चीख निकलने लगी।
उसी चीख के साथ उसकी योनि से खून बाहर निकलने लगा मेरा लंड अंदर तक जा चुका था उसे बड़ा अच्छा लग रहा था लेकिन वह मेरे लंड की गर्मी को झेल नहीं पा रही थी। वह कहने लगी तुम्हारा बहुत ही ज्यादा मोटा है उसकी योनि से लगातार खून बाहर की तरफ को निकल रहा था मैंने उसे कहा क्या तुम मेरे लंड की गर्मी को झेल नहीं पा रही हो? वह कहने लगी नहीं यह पहला मौका है और यह कहते हुए मैंने उसके दोनों पैरों को चौड़ा किया और अब मैं उसे तेज गति से धक्का मारने लगा। उसकी योनि से लगातार गिला पदार्थ बाहर की तरफ निकल रहा था उसकी योनि की चिकनाई में भी बढोतरी हो गई थी उसकी योनि की चिकनाई इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी और वह झड़ चुकी थी। उसने मुझे कहा मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है लेकिन मैंने उसे 5 मिनट तक और चोदा और जब मैंने उसकी योनि मे अपने वीर्य को गिरा दिया तो वह कहने लगी जल्दी से अपने लंड का बाहर निकालो।