खूब चूची को पिया गोरी मेम की

मुझे अपने दोस्तों से देसी सेक्स स्टोरी के बारे में हाल में पता चला। इसलिए मैं भी अपने जीवन का पहला सेक्स अनुभव आप सबसे शेयर करने को उतावला हो उठा।
बात है ही कुछ ऐसी और साथ ही जीवन का पहला सेक्स अनुभव कुछ चीज़ ही ऐसी होती है कि भुलाए नहीं भूलती।
बात सन 2010 की है। तब मैं 28 साल का बाँका नौजवान था। बाक़ी लड़कों की तरह मेरी भी सेक्स में काफ़ी रूचि थी।
जहाँ कोई सुन्दर लड़की देखी नहीं कि मन सेक्स करने को उतावला हो जाता था।


मेरे लंड का साइज़ साढ़े 6 इंच और घेरा 4 इंच का है।
बड़े बड़े दूध वाली औरतें मुझे और आकर्षित करती थीं। मन करता था कि अकेले में पकड़कर उसका सारा दूध पी जाऊँ और हमबिस्तर होकर रात भर चोदूँ।
लेकिन इसके लिए मुझे 28 साल की उम्र तक इंतज़ार करना पड़ा।
आगरे में विदेशी पर्यटक काफ़ी आतें हैं। अक्टूबर, 2010 को मैं अपने काम से दिल्ली से आगरा लौट रहा था, बस ए सी थी।
अच्छे खासे यात्री थे, जिनमें विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। इसमें दो जोड़े अंग्रेज़ों के थे और एक महिला की गोद में बच्चा था। बच्चे की उम्र रही होगी यही लगभग 1 साल।
उस महिला के पास वाली सीट का हैंडल थोड़ी टूटी होने की वजह से बस के कंडक्टर ने मुझसे वहाँ बैठने का आग्रह किया, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। क्यों? कारण आपको ख़ुद पता चल जाएगा।
बच्चा थोड़ी थोड़ी देर में रोने लगता था और उसकी मम्मी उसे बोतल से दूध पिलाती थी, चुप करने के लिए। मुझे अंग्रेज़ी अच्छी आती है, तो इस दौरान गोरी मेम को मदद करने के कारण थोड़ी सी नज़दीक़ी भी बन गई थी।
उसका नाम था लूसी (सारे नाम काल्पनिक लिख रहा हूँ )।
एक बार मैंने बच्चे को अपने पास ले लिया, लेकिन गोद लेते वक़्त मेरा दायाँ हाथ उसकी बाईं चूची से बुरी तरह सट गया। उस मेम के बदन का आकार होगा 40-34-45, चूचे शायद 40 से भी बड़े होंगे। लगता था, मुलायम बुलडोज़र ही हैं !
चूची के छूते ही मेरे पूरे शरीर में सनसनाहट की लहर दौड़ गई और वो अंग्रेज़न भी मुझे देखकर प्यार से मुस्कुराई और साथ ही ‘सॉरी’ कहा।
मैंने कहा- नो नीड टू से सॉरी, इट्स ओ़के।
तो वो और मुस्कुराई।
फिर मैं खिसक कर और पास बैठ गया और बीच बीच में मुझे मुलायम गद्दों के धक्के लगते रहे।
पैंट के अंदर मेरा लंड चेन तोड़ कर बाहर आने को बेताब होने लगा, शायद आग दोनों तरफ़ लगनी शुरू हो गई थी।
बातों बातों में मैंने उसे बताया कि मैं तो आगरा का ही रहने वाला हूँ और बतौर टूरिस्ट गाइड काम करता हूँ।
बस फिर क्या था, उस ग्रुप के 4 सदस्यों का मैं गाइड बन गया। साथ में 1 नवविवाहित भारतीय जोड़ा भी इसी ग्रुप में शामिल हो गया। उनके नाम थे माधुरी और श्याम।
एक बात थी कि हम सबकी उम्र 25-30 के दायरे में ही थी, तो एक दूसरे के पास आने में यह सहज व स्वतः स्फूर्त सहायक रहा।
आगरा पहुँचकर मैंने उन 6 लोगों को बढ़िया से सबको दिन भर आगरे का क़िला, सिकंदराबाद का मक़बरा और ताजमहल की सैर कराई, जो अगले दिन तक ख़त्म हुई।
रात में सब वहाँ के एक 3 स्टार होटल में ठहरे।
पहली रात को हल्की व्हिस्की और नॉनवेज खाना सबने लिया। हँसी मज़ाक़ भी ख़ूब हुआ। बीच बीच में मौक़ा पाकर मेरी कोहनी अंग्रेज़न की चूची से टकरा जाती थी, जिससे वो जानकर भी अनजान बनी रहती थी।
उन सबके ड्रेस भी ऐसे चोदू एक्सपोजिंग थे कि थोड़े से झुकने से ही उनके उरोजों के बीच की घाटी पूरी दिखने लगती थी।
मैंने उनकी ख़ूबसूरती की ख़ूब प्रशंसा की।
लेकिन हम सबको असली मज़ा दूसरे दिन शाम को आया, जब सारे लोग बिछुड़ने वाले थे। होटल के कमरे में मैं उन्हें बाय कहने के लिए जैसे ही क़दम रखा, लूसी मुझसे कसकर लिपट गई और बेतहाशा मुझे चूमने लगी।
बस फिर क्या था ! मैं तो था ही प्यासा। हम दोनों के होंठ कब मिले और कब जीभें एक दूसरे की गहराई का पता लगाने लगीं, ये पता ही ना चला।
उसके बड़े बड़े दूध मेरी छाती में जैसे घुसना चाहते थे। मैं भी बहुत उत्तेजित हो गया और लूसी के दूधों को कस कसकर दबाने लगा। एक बूब एक हाथ में समाता ही ना था।
वो मुझे और कसके चिपटाती गई। उत्तेजना इतनी बढ़ी कि मैंने उसकी टी शर्ट और उसने मेरी, तुरंत उतार फेंकी। उसकी ब्रा फाड़कर मैंने फेंक दी और एक प्यासे की तरह मैं दोनों दूधों पर झपट पड़ा और बारी बारी से कभी बाईं चूची को, तो कभी दाईं चूची को पीने और मसलने लगा।
बीच बीच में निप्पल को भी धीरे धीरे काट लेता था तो वो सिस्कार उठती थी और मेरे सर को अपने दूधों पर और कसकर दबा लेती थी।
दूध की धार पीते पीते मेरा मन भर गया। फिर ऐसा करते करते 15 मिनट ऐसे ही बीत गए। उसका बाबू इस बीच गहरी नींद में सोया रहा।
मैं कभी उसके होंठ चूसता था, तो कभी उसके दूध पीता था। इसीबीच अचानक लूसी नीचे झुकी और एक झटके से मेरा पैंट और फिर तुरंत जांघिया खोलकर एक तरफ़ फेंक दिया और मेरे लवडे को कसकर पकड़कर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी, जो मारे उत्तेजना के पहले से ही खड़ा था।
यह मेरे साथ पहली बार हो रहा था और मुझे लगा कि मैं उत्तेजना के मारे नीचे गिर जाऊँगा।
वो बहुत ज़ोर से मेरे लंड के सुपारे को अपने मुँह में अंदर बाहर करने लगी।
मैंने एक झटके में लूसी को अपने से अलग किया और उसे गोद में उठाकर पलंग पर ले गया। अगले मिनट ही उसकी पैंट मैंने खींचकर उतार दी। उसने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी।
हम दोनों के बीच फिर चूमा चाटी का दौर शुरू हुआ और सिर्फ़ 2-3 मिनट में ही हम लोग 69 की अवस्था में आ गए।
मैं नीचे और वो मेरे ऊपर, वो मेरा लंड चूस रही थी और मैं उसके बुर को नीचे से ऊपर तक चाट रहा था।
इस बीच हम दोनों झड़ गए और मैंने उसके बुर का पानी और उसने मेरा वीर्य गटक लिया।
3-4 मिनट हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे के उपर पड़े रहे, दोनों के हाथ प्यार से एक दूसरे को सहलाते रहे।
फिर मैंने उसकी चूची सहलाना और कसकर दबाना शुरू किया और उसने मेरे लौड़े को फिर से अपने मुँह में ले लिया और गपागप अंदर बाहर करने लगी।
उत्तेजना से मैंने उसकी बुर ज़्यादा अंदर तक अपनी जीभ से पेलने के लिए जैसे ही अपना सिर थोड़ा ऊपर उठाया कि तभी एक हादसा हुआ।
क्या देखता हूँ कि वही भारतीय नवविवाहित जोड़ा हमारे सामने खड़ा हमें देख रहा है।
हमसे एक ग़लती हो गई थी कि हम ये सब करने से पहले दरवाज़ा बंद करना भूल गए थे।
इतने में पति ने पत्नी को आँख मारी और उन दोनों में भी प्यार और वासना का दौर शुरू हुआ। बस 4-5 मिनट के अंदर ही जुली और श्याम दोनों पूर्ण रूप से जैसे ही निर्वस्त्र हुए, हमने दोनों को ही खींचकर अपने बिस्तर पर सुला लिया।
अब नौजवान 2 जोड़े एक ही बिस्तर पर थे।
शायद इस मौक़े में बातों से कम और आँखों से ज़्यादा काम लिया जाना था तो ताबड़तोड़ चुराई का दौर चल पड़ा।
मैंने लूसी को और श्याम ने माधुरी को कस कसकर चोदा।
यह चुदाई कार्यक्रम 10-15 मिनट तक चला। हम जैसे ही थकते थे, तो दूसरे जोड़े की चुदाई देखने लगते थे। इससे दुबारा शरीर में बिजली दौड़ जाती थी। एक मर्द के लौड़े का, दूसरी औरत के बुर में घुसने निकलने को देखना बहुत उत्तेजना पैदा करता था। अंत में हम दोनों जोड़े लगभग एक साथ ही खलास हुए।
मैं और श्याम इस दौरान तो थक गए थे, लेकिन लूसी और माधुरी के चेहरों पर थकान का नामोंनिशान नहीं था।
हँसते हँसते दोनों देवियाँ उठीं और तौलिए से अपना बुर और हम दोनों का लंड साफ़ कर दिया। फिर सबके लिए वहीं रखा कोल्ड ड्रिंक उठाकर सबको पिलाया, प्यास तो लगी ही थी।
दोनों जब ठुमककर चलती थीं, तो उनके कूल्हों और दुद्धूओं की थिरकन देखते ही बनती थी।
लूसी की चूची से अब दूध टपकना शुरू हो चुका था।
हम चारों की महफ़िल फिर वहीं पलंग पर ज़मीं और मैं माधुरी की चूची दबाने लगा और श्याम लूसी के निप्पल को लगा चूसने।
शायद यह लूसी को अच्छा लगा, क्योंकि उसकी चूची में दूध भर गया था।
वे दोनों औरतें भी उत्तेजना से भरकर हमारे लौड़ों को पहले कस कसकर दबाने, फिर चूसने लगीं।
अब चोदम-चुदाई का जो दौर शुरू हुआ, वो सबसे दमदार था।
चुदाई के पूरे 3 दौर और चले।
पहले हम दोनों ने ही बारी बारी से लूसी और माधुरी, दोनों के बुर को एक के बाद एक, जमकर चोदा। थकावट उनकी चूचियों और होंठों को चूसने से ही दूर हो जाती थी।
माधुरी तो चिल्लाकर मुझे कहने लगी- साले, मेरी बुर को कस कसकर चोद के फाड़ दो।
जब मैं माधुरी को चोदने लगा, तो उसने मेरे हाथ पकड़कर अपने दूधों पर रख दिए और ज़ोर ज़ोर से दबाने के लिए कहने लगी, फिर सर पकड़कर पीछे किया और बोली, ऐ नौसिखिए, मेरा दुद्दू क्या तेरा बाप पीयेगा?
माधुरी के दोनों पैर मेरी गांड के पीछे जाकर एकदम ऐसे दबोचे थी, जैसे मेरे लवड़े को बुर के भीतर ठेलने के लिए बनें हों।
श्याम भी लूसी को धकाधक पेले जा रहा था और लूसी की दूध की टंकी का अमृत भी पिये जा रहा था।
बीच में दोनों औरतें, जो अग़ल बग़ल ही लेटकर चुदवा रहीं थीं, एक दूसरे का दूध भी दबाती थीं, और एक दूसरे की बुर के दाने को भी रगड़ती थीं।
पूरे कमरे में फचाफच की आवाज़ गूँज रही थी।
लूसी ने कहा- फक मी हार्ड !
तो उधर माधुरी चिल्ला रही थी- साले मादरचोदों, कस कसकर और तेज़ी के साथ मेरी बुर चोदो।
तभी 15 मिनट में लगभग एक साथ ही हम दोनों मर्द खलास हो गए और अपना माल आधे आधे लूसी और माधुरी के चेहरे और वक्ष पर गिरा दिया।
अब मैं तो बहुत थक चुका था। इतने में श्याम उठा और कमरे में रखे फ़्रिज से जूस की 4 बोतलें ले आया। पीकर हमें जब ताजगी मिली, तो दिमाग़ ने फिर ख़ुराफ़ाती दिखाना शुरू किया।
हम दोनों मर्द फिर उन्हें सहलाने और पुचकारने लगे और बदलें में वे भी ऐसा ही करने लगीं। इससे हम दोनों के लंड फिर से खड़े हो गए।
लूसी इसी बीच अपने हाथ के इशारे से 2 छेद दिखाने लगी, जिसका मतलब साफ़ था।
लूसी ने सबसे पहले मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे तरफ़ चेहरा करके मेरे खड़े लंड को चूसा और तमतमाए लंड को पकड़कर अपनी पनीयाई बुर में गपाक से ले लिया और आगे की तरफ़ झुककर मुझे पेलने लगी।
उसके दोनों आम लटककर झूल रहे थे, जिसमें से दूध टपकने लगा था। तभी माधुरी अपनी हथेली में लूसी की चूची पकड़कर दूध निकालने लगी, जिसे उसका पति पी जाता था।
फ़िर हम तीनों चारों ने लूसी के दूध का स्वाद चखा। श्याम को क्या धुन सवार हुई कि उसने यह दूध लूसी की बुर में डालना शुरू किया। मैंने अपना लंड लूसी की बुर से निकाला और उसे सीधा करके अपने शरीर के उपर लिटा लिया और पुनः बुर में अपना लंड पेल दिया। अब श्याम पीछे की तरफ़ आकर अपना लौड़ा लूसी की गांड में पेलने लगा। पहली बार में गया नहीं, तो उसकी बीवी अपनी पनीयाई बुर से चिकनाई निकालकर लूसी की गांड और अपने पति के लंड में चुपड़ने लगी।
अब लौड़ा बुर में घपाक से घुस गया और शुरू हुई लूसी की गांड और बुर की एक साथ चुदाई।
लूसी की गांड और बुर में बहुत कसके धकमपेल करने के बाद माधुरी ने कहा- अब तुम दोनों मेरी गांड और बुर की भी एक साथ चुदाई करो।
तो माधुरी के साथ हम भेदभाव कैसे कर सकते थे?
लिहाज़ा, वो भी वैसे ही चुदी, जैसे कि लूसी की चुदाई हुई थी !
हाँ, एक फ़र्क़ यह हुआ कि माधुरी की गांड और बुर को एक साथ चोदते समय लूसी ने अपने चूची से दूध की धारा माधुरी के बुर में जमकर बहाई, जो मेरे और श्याम के लंड को धो धोकर फचाफच अंदर बाहर होने में मदद करती रही।
फिर जैसे ही हम दोनों खलास होने के कगार में पहुँचे, फ़ौरन माधुरी की सुरंगों से अपने अपने हथियार को बाहर निकाला और मूठ मारकर दोनों सुंदरियों के वक्ष-उभारों और चेहरे पर गिरा दिया, जिसे दोनों ने एक दूसरी के शरीर से चाटकर साफ़ कर दिया।
फिर हम लोग एक दूसरे के शरीर से चिपककर 2 घंटों तक सोए रहे और नींद तब टूटी, जब होटल के बैरे ने घंटी बजाकर चाय के लिए पूछा।
चलते वक़्त दोनों ने मिलाकर मुझे कुल 8000 रूपए दिए। इतने अच्छे टूरिस्टों से मुझे ये पैसे लेना गवारा नहीं था इसलिए मैं फ़ौरन बाज़ार गया और 1000 रू और मिलाकर, चाँदी की बनी दो ताज की अनुकृति लाकर उन्हें प्यार से उपहार में दे दी, बिना बताए कि इसके अंदर क्या है !
मुझे पता नहीं कि मैंने सही किया या ग़लत किया, लेकिन अन्तर्वासना की प्यारी प्यारी सेक्सी बुरवालियों, चूतवालियों और लंडवालों, यह थी मेरी ज़िंदगी की पहली चुदाई की दास्तान-ए-ताज जो घटी ताज की नगरी आगरा में, लेकिन मेरा दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य कि 2012 में अपनी अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरी लगने के बाद से ही मेरा चक्कर बैंगलोर, चेन्नई, दिल्ली और कलकत्ता का होता रहा है लेकिन उसके बाद से ऐसा सेक्स सुख तो क्या, साधारण सुख भी नहीं मिल पाया, जिसकी मुझे तलाश है।
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