हेलो दोस्तों आज मैं आपको एक नयी कहानी सुनाने जा रहा हूं, पहाड़न की चूत मेरे पहाड़ी एडवेंचरों की एक ऐसी कहानी है जिसको पढ कर आप का दिल खुश हो जाएगा। तो आईये चलते हैं कहानी की तरफ। मेरा मामा गांव है विंध्याचल पर्वत की तराईयों में। जहां कि हम सब भैंस चराने के लिए पहाड़ की हरियाली पर उपर जाते हैं। हमारे झूंड में लड़कियां भी भैंस लेकर जाती हैं, और सच तो ये है कि लड़के लड़कियां दोनों ही मिलजुल के रहते हैं। उनको मुसीबतों में एक दूसरे का साथ देना होता है और ये चरवाहों के समूह के नियम भी हैं।

आपको बताता हूं अपनी एक दोस्त के बारे में, गोपी। गोपी एक मस्त ग्वालन है, जैसा नाम वैसा रुप वैसा गुण। एक दम भोली भाली, दिल की साफ और जवानी की भरी गंठरी। सच में उसे बड़े ही फुरसत से बनाया गया है। मक्खन की तरह रंग, चमड़ी इतनी चिकनी कि बस चिकोटी काट दो तो लाल हो जाए, मस्त गोरे गोरे बडे बड़े स्तन, बिंदास चूंचे बस देख लो और अपनी हालत खराब कर लो। साइज 36 है चूंचो का। पतली कमर, एक दम 28 इंच की और उसपर मस्ताती इंडियन गांड की साइज होगी 36, जो कि उसके झीनी कपड़ों में छुपती नहीं है। सच तो ये है कि गोपी की चूत के बारे में सोच कर चरवाहे अक्सर पेड़ों के पीछे जाकर मूठ मारते हैं।

खुश किस्मत हूं मैं कि गोपी मेरी दोस्त है। एक तरह से हम दोनों में प्रेम है और हम दोनों एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते। जब भी उसे दिक्कत होती है, वो आवाज देती है – मनोज!!!!!!!!! ओ मनोजवा!!!!!!!!!!!!!! और मुझे भाग के जाना होता है वरना मेरी रानी रूठ जाए तो? कौन मनाएगा उसे आप तो नहीं ना?

अरे हां, हम दोनों के बीच हल्के फुल्के चुदम चुदाई के फोरप्ले वाले खेल तो अक्सर चलते रहते हैं, ये तो बताना ही भूल गया मैं। सच कहूं तो गोपी, जब भी मौका मिलता अपनी चूंची मुझसे जरुर दबवाती। उसकी बड़ी बड़ी चूंचियां जिनकी साइज छत्तीस दिखती है, उसको मैने पहले बत्तीस से दबा दबा कर चौंतीस किया है और फिर चौंतीस से मसलना शुरु किया तो छत्तीस कर दिया। वो निस्संदेह मेरी मेहनत का परिणाम है। अक्सर चूंचे दबवाना, गोपी का शगल है, और जब भी हम दोनों पास होते, और आसपास कोई न होता, वो आराम से मेरे हाथ को उठा कर अपने ब्लाउज में डाल देती है और निश्चिंत हो कर कहती है, ले दबा भूक्खड़!! और प्यारी प्यारी मुस्काने मारने लगती है। उसकी यह अदा मुझे बहुत पसंद है।

इतना ही नहीं, मौका मिलने पर वह अपनी चूत में उंगली भी करवा चुकी है, कई बार वह। उसकी मस्त मोटी मोटी चूत पर, पतली पतली फांकें और नन्हा सा छेद। उफ्फ कौन भूल सकता है उसे, एक बार जहां देख लिया कि नजरों में चढ गयी। मैने उसको एक बार पूरा नंगा होकर नहाते देख लिया था और तब से उसकी जन्नत सरीखी चूत मारने के लिए बेकरार था।

और अब कहानी सीधी उस दिन की जिस दिन मैने उसे चोदा। उस दिन हम दोनों अपनी भैंसे लेकर झुंड से अलग होकर निकल पड़े, एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले, बस मौके की तलाश में। गर्मी बहुत थी और एक जगह हमें चश्में का पानी दिखा। हम दोनों ने अपने अपने कपड़े खोले और उसमें उतर गये। वो अपने ब्लाउज और पेटीकोट में थी। मैंने जैसे ही उसको साड़ी उतारते देखा, उसकी नंगी कमर और गांड से चिपकी पेटीकोट के साथ पल्लू पर से साड़ी के हटते ही मेरी वासना उफान मारने लगी।

 नहाते हुए गोपी की चूत मारी।

और फिर जब हम दोनों पानी में उतरे तो एक दूसरे के उपर जल उछालने लगे। ठंडा पानी धूप में राहत दे रहा था। मैने लंगोट पहनी हुई थी और तभी गोपी को शरारत सूझी। मैं कमर भर पानी में खड़ा था। उसने गोता लगाया और नीचे पानी में जाकर मेरा लंड पकड़ लिया। और सहलाने लगी। सच तो ये है कि उसको भी चूत में खुजली मच रही थी। लंड लंगोट से बाहर खींच कर वो सांस रोके मुझे पानी के अंदर देसी मुखमैथुन का मजा देने लगी थी। वाकई ये बेहद अलग और मजेदार एक्सपिरियेंस था। मुझे जबरदस्त लग रहा था।

तभी वो सांस लेने के लिए पानी के उपर आई। मैने उसे पकड़ के चूम लिया। और फिर वो नीचे गयी, इस बार उसने अपने मुह में लंड को लेकर मुझे मस्त देसी मुखमैथुन का मजा देने लगी। पानी के अंदर देसीमुखमैथुन। कहीं मैं पागल ना हो जाऊं। उसने चूस चूस के मुझे बेहाल कर दिया। मेरा वीर्य उसके मुह में निकल गया, आह्ह आअह्ह्ह्ह अह्हाअह्हाअहाह!!

मैने उसे पानी से बाहर निकाला और गोद में उठा कर झील के किनारे आधे पानी में और आधे पानी के बाहर पड़े एक पत्थर पर लिटा दिया। मै उसकी टांगों के बीच था और उसकी चूत को चसक रहा था। मस्त कुंवारी चूत एकदम मेरा लंड खड़ा कर चुकी थी फिर से। मैने उसकी टांगों को अधिकतम दूरी पर अलग किया।

मोटे लंड के लिए ज्यादा जगह जरुरी थी। टाइट चूत में दो उंगली करके उसकीइ संकीर्णता का जायजा लेते हुए, रास्ता बनाते हुए मैने लंड को मुहाने पर रखा। मैने उसके मुह पर हाथ रखा जिससे की सील टूटते समय वह जोरदार चीख न मारे। और उसको एक जोरदार झटका लंड से चूत के अंदर दिया। वो मिमियाने लगी, आह्ह आह्ह्ह मर जाउंगी मत करो बहुत दर्द होता है मनोज।

पर नहीं मैं नहीं रुका। दो झटके में सील को तोड़ते हुए मैने स्पीड पकड ली थी। पानी के आधा अंदर मेरा बदन और आधा बदन उसके उपर छाया हुआ, चपाचप च्पाचप चपाचाप का मधुर संगीत सुना रहा था।

आध घंटे तक अपनी चरवाहन की चूत मैने अलग अलग तरीके से चोदी और फिर उसको अपने गले लगाकर पानी के अंदर आधी बाहर खड़ा करकर कुतिया बनाके भी चोदा। कुतिया बन कर चोदने में उसके चूत के अंदरलंड का घुसपैठ मस्त हो रहा था। वो खुश थी और मैं भी खुश था। आखिर में अपना वीर्य उस ग्वालन को चटाकर और उसके चूत से निकल रहे क्रीम को पीकर मैं धन्य हो गया।

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