बिस्तर पर प्यार का इजहार

मेरे पिताजी ने नई कार खरीदी उस वक्त मेरी उम्र 21 वर्ष थी और मैं बहुत ज्यादा खुश था क्योंकि पिताजी की नई कार से पिताजी की हैसियत में भी बढ़ोतरी हो गई थी। आस पड़ोस के लोग उन्हें बधाईयां देते और बधाइयों का तो जैसा दौर ही शुरू हो गया तो वह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। हमारे पड़ोस में रहने वाले लोग मुझे कहते कि जाओ अपने पापा से कह कर हमें भी कहीं घुमाने ले चलो लेकिन मैं सब को मना कर दिया करता था। मुझे लगने लगा कि मुझे भी कार सीख लेनी चाहिए और इसी के चलते मैंने कार चलाना सीखा मैं और पिताजी सुबह के वक्त कार चलाने के लिए जाते उन्होंने ही मुझे कार सिखाने का जिम्मा लिया हुआ था। जब पहले दिन मैंने कार का हैंडल पकड़ा तो मुझे एक अलग ही अनुभूति हो रही थी पिताजी ने मुझे गाड़ी की चाबी दी और कहा इसे तुम लगाओ और हल्का सा घुमाना। मैंने भी गाड़ी की चाबी को लगाया और हैंडल को घुमाया तो गाड़ी स्टार्ट होने लगी जैसे ही गाड़ी स्टार्ट हुई तो गाड़ी में लगा स्टीरियो बजने लगा।

उसमें पिताजी ने कुछ पुराने गाने चलाए हुए थे तो वह बजने लगे मैं एकदम से डर गया और मैंने पिता जी से कहा पिता जी अब क्या करूं। पिताजी ने स्टीरियो को बंद कर दिया वह कहने लगे तुम आगे देखकर गाड़ी चलाओ अब उन्होंने मुझे गाड़ी की एबीसीडी बताना शुरू कर दिया। पहले दिन मुझे बड़ा अच्छा लगा मुझे ऐसा लगने लगा कि अब मुझे जल्द ही गाड़ी सीख लेनी चाहिए और मैं गाड़ी सीखने के लिए सुबह उठ जाया करता था। पिताजी मुझे कहने लगे तुम तो आजकल सुबह जल्दी उठ जाते हो मैंने पिता जी से कहा आखिरकार मुझे गाड़ी जो सीखनी है। पिताजी मुझे गाड़ी सिखाने के लिए मेरे साथ चल पड़ते थे और वह मुझे गाड़ी सिखाते मुझे अब धीरे-धीरे गाड़ी चलाना आ गया था। मेरे अंदर इतना कॉन्फिडेंस तो जाग चुका था कि मैं गाड़ी खुद ही चला सकूं इसलिए मैं एक दिन गाड़ी खुद ही चलाने के लिए सुबह निकल पड़ा। सब कुछ ठीक रहा और मैं घर वापस लौट आया पिताजी जब उठे तो वह कहने लगे आज तुम चल नहीं रहे हो मैंने पिता जी से कहा नहीं पिता जी मैं तो गाड़ी चला कर खुद ही पार्क तक गया था और अब वापिस भी आ गया हूं।

पिताजी बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे और कहने लगे सुमित बेटा ऐसा बिल्कुल भी ठीक नहीं है तुम मुझसे पूछ तो लिया करो कि तुम गाड़ी लेकर जा रहे हो अभी तुम्हारे पास लाइसेंस भी नहीं है और यदि कुछ दुर्घटना हो जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा। पिताजी ने मुझे समझाया तो मुझे भी उनकी बात का एहसास हुआ कि वह बिल्कुल ठीक कह रहे हैं मैंने अगले दिन से पिताजी को कहा कि आप भी मेरे साथ चला कीजिए। अब मैं गाड़ी काफी हद तक सीख चुका था एक दिन मैं अकेले ही गाड़ी चला कर गया उस दिन आगे से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया और मेरा एक्सीडेंट हो गया। जब यह बात मैंने पिताजी को बताई तो पिताजी को गुस्सा आया लेकिन वह कहने लगे चलो कोई बात नहीं मैं गाड़ी ठीक करवा देता हूं और उन्होंने गाड़ी ठीक करवा दी। उसमें उनके काफी पैसे खर्च हो गए लेकिन उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा परंतु उसके बाद भी मेरा हौसला जैसे पस्त हो गया था। मैं गाड़ी को अब नही चलाता था परंतु पिता जी कहने लगे कि बेटा ऐसा हो जाता है तुम्हें इसमें डरने की जरूरत नहीं है उसके बाद मैंने भी दोबारा से गाड़ी चलाना शुरु कर दिया। अब मैं गाड़ी चलाना पूरी तरीके से सीख चुका था और कभी मेरी मम्मी को कहीं जाना होता तो पिताजी मुझे ही कह देते जाओ अपनी मम्मी को अपने साथ ले जाओ। मैं ही घर का सारा काम संभाला करता था घर में एकलौता होने का बहुत फायदा है कि सब कुछ मेरा ही था। मैंने आज तक कभी भी किसी के साथ कोई चीज बांटी नहीं थी और मुझे कोई भी चीज बांटना बिल्कुल पसंद नहीं है। एक दिन पिताजी ने मुझे कहा कि तुम ही गाड़ी लेकर जाया करो पिताजी तो काफी बरसों से गाड़ी चला रहे हैं इसलिए उनका मन नहीं होता और वह मुझे ही कार की चाबी दे दिया करते थे। अब मेरा भी कॉलेज पूरा हो चुका था और मैं अब नौकरी की तलाश में था मैंने अपने इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म कर ली थी और मैं नौकरी की तलाश में था लेकिन मुझे अच्छी नौकरी कहीं मिल नहीं पा रही थी।

एक बार पिताजी के एक दोस्त घर पर आए हुए थे वह कहने लगे कि क्या तुमने इंजीनियरिंग की है तो मैंने उन्हें कहा हां मैंने इंजीनियरिंग की है। उन्होंने अपने किसी परिचित से करवा कर मेरी नौकरी कंपनी में लगवा दी मेरी नौकरी भी लग चुकी थी और मेरे जीवन में सब कुछ बड़े अच्छे से चल रहा था। पिताजी की कार अब पुरानी होने लगी थी लेकिन फिर भी मैं उसे ही अपने ऑफिस लेकर जाया करता था। मुझे नौकरी करते हुए भी करीब एक वर्ष हो चुका था दोस्तों से भी अब उतना मिलना जुलना नहीं था जितना कि पहले रहता था। उसी दौरान मेरी मुलाकात मेरी ममेरी बहन की सहेली सुरभि से हुई जब पहली बार मैंने सुरभि को देखा तो वह मुझे बहुत अच्छी लगी और उसके सिंपल स्वभाव को देखकर मैं खुश था। मुझे इस बात की खुशी थी कि सुरभि भी बिल्कुल मेरी तरह ही है हम दोनों के खयालात काफी हद तक एक दूसरे से मिलते थे और हम दोनों एक दूसरे को पसंद भी करने लगे थे। एक दिन मुझे मेरी ममेरी बहन ने कहा कि क्या तुम सुरभि को पसंद करते हो मैंने उसे कहा हां मैं सुरभि को पसंद करता हूं वह कहने लगी क्या तुमने सुरभि को आज तक अपने दिल की बात नहीं बताई। मैंने उसे कहा नहीं मैंने अभी तक उसे अपने दिल की बात नहीं बताई है मुझे यह डर है कि कहीं उसे कुछ गलत ना लगे वह कहने लगी भैया जब तक आप सुरभि को बोलोगे नहीं तब तब आपको पता कैसे चलेगा।

मैंने उससे कहा ठीक है मैं देखता हूं कि मैं सुरभि से अपने दिल की बात कह दूं आखिरकार वह घड़ी नजदीक आ ही गई जब मैंने सुरभि से अपने दिल की बात कह दी। हम दोनों ने एक दिन लॉन्ग ड्राइव पर जाने का फैसला किया मेरे पास पापा की कार थी जो काफी वर्षों से मेरे पास ही थी और जब सुरभि मेरे साथ कार में बैठी तो ऐसा लगा जैसे अब मैं पूरा हो चुका हूं। मेरे पास मेरी कार और सुरभि दोनों ही थे सुरभि के साथ मैं लॉन्ग ड्राइव पर निकल गया और उस दिन हम लोगों ने बड़े ही अच्छे से साथ में समय बिताया। जब सुरभि को मैंने उसके घर पर छोड़ा तो सुरभि ने मुझे पीछे पलट कर दो तीन बार देखा और मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी। मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था क्योंकि सुरभि अब मेरे साथ थी और हम दोनों के बीच में प्यार था। हम दोनों एक दूसरे के साथ बहुत ही अच्छा समय बिताया करते और मुझे भी सुरभि का साथ बहुत अच्छा लगता। सुरभि और मैं कई बार लॉन्ग ड्राइव पर जा चुके थे लेकिन अब भी हम दोनों के बीच वह सब होना बाकी था जो दो जवां दिलों के बीच होता है और एक दिन मैने सुरभि के होठों को किस कर ही लिया। जब उसके होठों को मैंने किस किया तो मेरे अंदर से सुरभि को लेकर एक अलग ही उत्तेजना पैदा होने लगी। उसका नरम और पतले होठ गुलाब जैसे थे मैंने उन्हें बहुत देर तक किस किया। हम दोनों अपना आपा खो चुके थे लेकिन उस दिन मुझे घर जल्दी जाना था इसलिए हम दोनों के बीच उस दिन किस ही हो पाया। हम दोनों के अंदर सेक्स को लेकर रुचि तो बढ़ ही चुकी थी और हम दोनों चाहते थे कि एक दूसरे के साथ हम दोनों सेक्स का आनंद लें। हम लोगों ने ऐसा ही किया जब मैंने सुरभि के होंठो को चूमा तो वह भी अपने बदन को मुझे सौंप चुकी थी।

मैंने उसके स्तनों का भी जमकर रसपान किया जैसे ही मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो सुरभि ने उसे अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू किया। वह मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर उसका रसपान कर रही थी और उसे बड़ा मजा आ रहा था काफी देर तक उसने मेरे लंड का रसपान किया। जैसे ही हम दोनों के अंदर गर्मी पूरी तरीके से बढने लगी तो सुरभि कहने लगी सुमित तुम मेरी योनि पर अपने लंड को लगाओ। मैंने भी अपने मोटे लंड को सुरभि की योनि मे लगाया और अंदर की तरफ धकेलते हुए मैंने सुरभि की योनि में लंड को अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। हम दोनों ही एक दूसरे से लिपट कर सेक्स का आनंद लेने लगे मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था और सुरभि भी बहुत खुश थी। सुरभि ने मेरी कमर पर निशान मार दिए थे जिस प्रकार से मैं उसे किस कर रहा था उसके होठों से भी खून बाहर निकल आया था और उसके स्तनों पर मैंने लव बाइट के निशान मार दिए थे।

उसके स्तनों से मैने खून निकाल दिया था उसकी चूत से तेज खून आने लगा था। सुरभि के मुंह से मादक आवाज निकलने लगी थी वह बड़ी तेज आवाज मे सिसकिया ले रही थी उसकी मादक आवाज से मैं पूरी तरीके से उत्तेजित हो रहा था। जिस प्रकार से मैंने सुरभि के साथ संभोग किया उससे वह भी बहुत खुश थी और उसने अपने दोनों पैरों के बीच में मुझे जकड़ लिया। जब उसने मुझे अपने दोनों पैरों के बीच में जकडा लिया तो मैं हिल भी नहीं पा रहा था। वह कहने लगे लगता है मैं अब झडने वाली हूं। मुझे भी आभास हो चुका था कि वह झडने वाली है और कुछ ही देर बाद उसकी योनि से कुछ ज्यादा ही गर्म आग बाहर की तरफ को निकालने लगी। अब मैं भी उसकी गर्मी को झेल ना सका जैसे ही मेरा वीर्य उसकी योनि के अंदर समाया तो वह कहने लगी तुम अपने लंड को मेरी योनि से बाहर निकाल दो। मैंने भी अपने लंड को बाहर निकाल दिया और जैसे ही मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो उससे पानी भी टपक रहा था। सुरभि की चूत से मेरा पानी भी बाहर टपक रहा था।

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