मेरी दूर की मौसी की दो बेटियां है। बड़ी का नाम सरिता और छोटी का नाम कविता है। छोटी तो भी काफी छोटी है, मगर बड़ी बेटी सरिता, क्या लगती है। वैसे तो उसकी कद-काठी साधारण है, मगर एक चीज जो उसे खास बनाती थी, वह उसका सफेद गोरा रंग और उसके एकदम तने चूंचक। उसकी कुर्ती के ऊपर किसी पहाड़ की तरह हमेशा तने नजर आते थे उसके चूंचक। अकसर मेरे घर आ जाया करती थी। कभी-कभी मुझसे थोड़ा हंसी मजाक भी कर लेती थी।

उसकी एक अदा या यूं कहें कि लापरवाही थी कि वह कभी दुपट्टा नहीं पहनती थी। उसकी कुर्ती में से यूं तो उसके चूंचकों की एक झलक तक नहीं मिलती थी। क्या करें उसकी मां इतने तंग गले का सिलवाती थी, मगर एकदम तीर की तने उसके चूंचक हमेशा निमंत्रण से देते प्रतीत होते थे। यही वजह थी मैं उसके प्रति आकर्षित हो गया। मैं उस समय कॉलेज में पढ़ता था और वह भी दो बार इंटर फेल होकर फिर से इंटर की तैयारी कर रही थी, प्राइवेट। उसे पढऩे-लिखने से कोई मतलब नहीं था। बस दिनभर घर का काम या फिर मस्ती। कभी कुछ मांगने तो कभी कुछ देने मेरी मां को मौसी-मौसी करते हुए दिनभर में कई चक्कर लगा देती थी। मगर मैं इतना शर्मीला था कि कभी हिम्मत नहीं हुई कि उसके साथ कुछ गलत हरकत कर सकूं। खैर मुझे मौका तब मिला, जब मेरी दीदी से उसकी थोड़ी ज्यादा पटने लगी और मौसी ने मेरी दीदी से कहा कि इसे थोड़ा पढ़ा दिया करें ताकि यह इस बार तो पास हो जाए। उसे दिन में तो समय मिलता नहीं था, सो रात में किताबें लेकर चली आती और मेरी दीदी का सिर खाती। पढऩे में उसका मन लगता नहीं, दोनों पता नहीं क्या-क्या बातें किया करते या फिर टीवी पर सीरियल देखते। खैर मुझे मौका तब मिला जब वह पहली बार मेरे घर पर ही सो गई। मै बस इतना चाहता था कि एक बार उसके चूंचक को बिना कपड़ों के छूकर देखूं कि क्या वाकई ये इतने ही तने हैं। बस तो फिर मैने थोड़ी हिम्मत की और रात में सबके सोने के बाद उस कमरे में गया, जहां वह और मेरी दीदी एक ही पलंग पर सोती थीं। मैने देखा कि वह पलंग के एक किनारे पर गहरी नींद में सो रही थी। मैने चादर उठाकर धीरे-धीरे अपना हाथ अंदर सरका दिया। मेरा हाथ सीधा उसके चूंचकों से जा टकराया। मेरे लंड में करंट का एक झटका सा लगा। मैने धीरे से उसकी एक चूंची को थामा ही था कि वह कसमसाने लगी। डर के मारे मेरी जान सूख गई और मैं तेजी से अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया। कुछ देर बाद मैने देखा कि वह भी उठी और बाथरूम जाकर वापस आकर अपने कमरे में चली गई। इसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसके पास जाऊं।
इसके बाद तो यह तकरीबन अकसर होने लगा। वह पढऩे आती और पढऩे से ज्यादा दीदी के साथ बातें करती, टीवी देखती और फिर वहीं सो जाती। मैं कभी-कभी उसके बिस्तर के पास जाकर उसके चूंचक छूने की कोशिश करता, मगर पता नहीं क्यों वह गहरी नींद नहीं सोती थी या सो नहीं पाती थी। हर बार जैसे ही मैं उसके शरीर को हाथ लगाता, वह कसमसाने लगती और मुझे भागना पड़ता। इस तरह कई कई महीनें निकल गए, मगर मेरी मुराद पूरी नहीं हो पा रही थी। मै सोचता था कि क्यों चूंचक छूते ही वह कसमसाने लगती। मेरे दिमाग में अचानक एक आईडिया आया कि हो सकता है कि चूंचक इसके शरीर का सबसे सेंसेटिव हिस्सा हो। उसे छूने पर उसे भी करंट जैसा लगता होगा या गुदगुदी होती होगी। तो मैं क्या करूं, मैं इसी उधेड़बुन में लगा रहता था। आखिर मैने सोचा कि क्यों न इसकी चूत छूकर देखी जाए। इसकी चूत भी तो इसकी चूंचक की तरह ही नर्म होगी। और मैने तय कर लिया इस बार जब भी वो मेरे घर सोएगी मैं उसकी चूंचियों को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। दो दिन बाद ही यह मौका आ गया।
वह फिर से पढऩे आई और टीवी देखने के बाद दीदी के कमरे में जाकर सो गई। अब तो उसकी मां को भी इस सबकी आदत हो गई थी तो जब भी वह नहीं जाती वे पूछने तक नहीं भेजती थीं। इस बार मैने आधी रात तक का इंतजार किया। मैं आज किसी भी कीमत पर उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालना चाहता था। काफी देर बाद जब मुझे भी नींद आने लगी तो मैं उसके बिस्तर के पास गया। इस बार मैं उसके पैरों की तरफ बैठा था। चित लेटी थी। मैने धीरे से हाथ चादर के अंदर सरकाया। उसकी कुर्ती सरककर ऊपर आ गई थी। मेरा हाथ उसके चिकने पेट से टच हुआ, मगर मैने तुरंत हटा लिया। फिर मैने हाथ नीचे किया और सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत पर धीरे से टच किया। उसकी चूत काफी नर्म और गुदाज थी। मैं थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसकी चूत को ऐसे ही ऊपर से टच करता रहा। आज वह घोड़े बेचकर सो रही थी शायद। मेरी हिम्मत अब खुलने लगी। मैने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया और कुछ देर वैसे ही रखा रहने दिया। सलवार के ऊपर से उसकी चूत के गुदगुदेपन का अहसास हो रहा था। फिर मैने हाथ ऊपर सरकाया और नंगे पेट पर हाथ रख दिया। कुछ देर उसकी रिएक्शन का इंतजार करने के बाद दूसरा हाथ भी चादर के अंदर ले गया और उसकी सलवार का नाड़ा पकड़कर थोड़ा उठा दिया ताकि मेरा हाथ अंदर जा सके। मैने हाथ धीरे-धीरे अंदर सरकाया और चड्ढ़ी की इलास्टिक ऊपर कर चूत पर धर दिया। मेरा हाथ अब उसकी नंगी चूत पर था। मेरा लंड झटके से सलामी मार रहा था। उसकी चूत पर मुलायम और रेशमी बाल थे। इतने नरम कि मानो रेशम हो। मै धीरे-धीरे उसकी चूत को सहलाने लगा, फिर एक उंगली उसकी चूत के दरार के बीच ले गया। जैसे ही उंगली से उसकी चूत की दरार में सहलाया, वह तेजी से कसमसाई। मैने उससे भी ‘यादा तेजी से अपना हाथ निकाला और अपने कमरे में भाग गया। मगर मुझे डर लग रहा था कि कहीं सरिता जाग न गई हो। अगर जाग गई होगी तो सुबह मेरी खैर नहीं। मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता हुआ सो गया।

Write A Comment