मेरा नाम राजीव है, मेरे दोस्त मुझे राज भी कहते हैं और आज मैं आपके साथ मेरे एक ऐसे अनुभव को बाँटना चाहता हूँ जो असल में मेरा पहला प्यार था लेकिन वो अधूरा ही रहा था। मेरे और भी कई अनुभव हैं जो मैं बाद में जरूर लिखूँगा लेकिन यह अनुभव मेरा सबसे पहला अनुभव भी है और नहीं भी और इस अनुभव को मैं हमारे (आपके और मेरे) बहुत अच्छे दोस्त संदीप शर्मा के कहने पर लिख रहा हूँ और इस अनुभव के होने में भी संदीप का बहुत बड़ा योगदान है।

कैसे वो आप को आगे पता चल जायेगा।

पहले मैं अपने बारे में बता दूँ। नाम तो मैं बता ही चुका हूँ, मैं दिल्ली में ही खुद का व्यवसाय करता हूँ, 33 वर्षीय शादीशुदा बहुत ही मिलनसार व्यक्ति हूँ, भरा पूरा परिवार है और जिंदगी मजे से कट रही है।

लेकिन मेरी कहानी शुरू तब होती है जब मैं बारहवीं पास करके अगली कक्षा में पहुँचा था। मैं तब भी मिलनसार ही था तो मेरे आस-पास लड़कियों का जमावड़ा लगा ही रहता था और मैं भी उनके साथ मस्ती मजाक कर लिया करता था लेकिन कभी भी उससे आगे की बातें मैंने सोची नहीं और कभी की भी नहीं।

उसी बीच मुझे अपनी ही कक्षा की एक लड़की नीतू से प्यार हो गया और मैंने उसे अपने दिल की बात बता भी दी, लेकिन जाने क्यों उसने तब ना कर दी और मैं भी उसकी ना को स्वीकार करके मेरी जिंदगी में व्यस्त हो गया। थोड़ी उदासी अपने अंदर समेट कर पर मैंने कभी नीतू को वापस से अपने पास आने के लिए नहीं कहा पर उसे मन ही मन प्यार करता ही रहा और शायद उसका ही नतीजा था कि नीतू को भी मेरे प्यार का अहसास हो गया और एक दिन उसने अपनी एक सहेली से कह कर मुझ तक यह संदेश भेजा कि वो भी मुझे प्यार करती है।

मुझे तो तब मानो दुनिया जहाँ की सारी खुशियाँ मिल गई थी ! और उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के प्यार खो गए थे, जब हम मिलते तो ढेरो बातें किया करते थे, एक दूसरे के साथ बैठे रहते थे और आने वाले कल के सपने बुना करते थे।

इसी बीच एक दिन मुझे उसने अपने घर पर बुलाया जब वहाँ कोई था नहीं। मैं उसके घर पहुँचा तो उसके लिए गुलाब के फूल लेकर गया और उसे फूल देने के बाद उस दिन मैंने उसे बाँहों में भर लिया और नीतू ने भी कोई इनकार नहीं किया।

बाँहों में भरने के बाद मैंने बिना रुके अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसे चूम लिया। प्रति-उत्तर में नीतू ने भी मेरे चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दिया और उसके बाद मैं और वो एक एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे को चूमते हुए एक दूसरे की जबान को चूसने लगे, कभी मैं उसके जबान को चूस रहा था और कभी वो मेरी जबान को।

इसी बीच मेरे हाथ उसकी पीठ से फिसलते हुए उसके सीने तक भी आ गए थे और मैंने उसके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया, ना ही उसने कोई विरोध किया और ना ही मैंने खुद को रोकने की कोशिश की।

हम दोनों ही एक दूसरे को चूम रहे थे और मैं उसके स्तनों को सहला रहा था, मसल रहा था और वो इस मस्ती में मस्त हो रही थी।

उसके बाद मैं नीतू को गोद में उठाया और उठा कर सोफे पर ले आया। सोफे पर लेटाने के बाद मैं उसे गालों पर चूमने लगा और उसके स्तनों को दबाता ही रहा। मैं उसके स्तनों को दबा रहा था, उसके मुँह से आह आह निकल रही थी, साथ ही वो एक ना भी कर रही थी जिसमें हाँ थी।

यह मेरा पहला ही अनुभव था जिसमें किसी लड़की को मैं इस तरह से चूम रहा था तो अब तक मैं पूरी चरम स्थिति में आ चुका था और नीतू की भी हालत कोई बहुत अच्छी नहीं थी।

ऐसे ही चूमते हुए मैं नीतू के उपर लेट गया और उसकी जांघों को कपड़ों के ऊपर से मेरे लण्ड से रगड़ने लगा तो नीतू ने मुझे कस कर पकड़ा और लगभग चीखते हुए झड़ गई।

मैं भी पहले ही चरम स्थिति में पहुँचा हुआ था तो मैं भी झटके मार कर साण्ड की तरह कराहते हुए अंडरवियर में ही झड़ने लगा।

उसके बाद जब थोड़ी हिम्मत आई तो नीतू ने मुझे वापस भेज दिया यह कहते हुए कि कोई घर पर आ जायेगा और हमारी यह मुलाक़ात पूरी होते हुए भी अधूरी ही रह गई।

मैंने सोचा कोई बात नहीं अभी नहीं तो बाद में फिर कभी मौका जरूर मिलेगा। और तब मैं उसके लिए यूँ भी बहुत संजीदा था कुछ महीनों पहले तक भी था तो मैं यौन सम्बन्धों को इतनी तवज्जो नहीं देता था, कम से कम उसके साथ तो बिल्कुल नहीं।

फिर उसके बाद हम दोनों जब भी मिलते तो एक दूसरे को चूमते और एक दूसरे के साथ मस्ती भी करते पर सब कुछ नियंत्रण में ही रहता था।

यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा और तभी जाने कैसे एक दिन नीतू के भाइयों को किसी तरह मेरे बारे में पता चल गया।

यह जान कर वो लोग मुझे पीटने के लिए ही आ गए थे, पर मेरी किस्मत अच्छी थी कि यह बात मेरे भाईयों तक पहुंची, उन्होंने उसके भाइयों को समझाया और वापस भेज दिया और यह बात पिताजी तक भी नहीं जाने दी।

फिर भैया ने मुझे भी समझाया कि मैं नीतू को भूल जाऊँ।

मैंने हाँ तो कर दी लेकिन मेरे लिए नीतू को भूलना मुमकिन नहीं था ना ही मैं उसे भूलने वाला था।

मैंने सोचा था कि नीतू से मिल कर सारी बातें पूरी कर लूँगा और उसे सब समझा दूँगा लेकिन नीतू कुछ दिन स्कूल आई ही नहीं और उसके बाद जब वो आई तो उसने मुझसे बात भी नहीं की, मैंने उससे बात करने की कोशिश भी की और जब मैंने उससे बात करने की कोशिश भी की तो नीतू ने मुझे पूरी तरह से ना कर दी।

उसके बाद मेरा और आगे नियमित पढ़ने का मन नहीं रहा तो मैंने पारिवारिक व्यवसाय में काम करना शुरू कर दिया।

उसके एक साल बाद ही नीतू की शादी हो गई और वो दिल्ली से बाहर चली गई। कुछ वक्त बाद मेरी भी शादी हो गई और मैं मेरे जीवन में मस्त हो गया।
मेरा और आगे नियमित पढ़ने का मन नहीं तो मैंने पारिवारिक व्यवसाय में काम करना शुरू कर दिया और उसके एक साल बाद ही नीतू की शादी हो गई और कुछ सालो बाद मेरी भी शादी हो गई।

मैं अपने जीवन में मस्त हो गया और नीतू उसके जीवन में मस्त थी। हम दोनों ने ही एक दूसरे से संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं कि लेकिन करीब चार साल पहले एक दिन नीतू मुझ से मिली और मेरे दिल के तार फिर से झनझना उठे।

और जब उसने मेरा फोन नम्बर माँगा तो मैं ना नहीं कर पाया, मेरे दिल का पुराना प्यार फिर से हिलौरें मारने लगा था, मैंने उसे यह कहने में जरा भी देर नहीं की कि मैं उसे अब भी प्यार करता हूँ।

नीतू का जवाब सुनने के इन्तजार में मेरा दिल धाड़ धाड़ बज रहा था और जब उसका जवाब सुना तो ऐसा लगा जैसे हर तरफ सितार बज रहे हों।

उसने कहा- राज, मैं भी तुमसे अब भी उतना ही प्यार करती हूँ।

उसके बाद हम दोनों की फोन पर बातें होती रही और एस एम एस करते रहे लेकिन फिर से मिलना नहीं हो पाया। वो कुछ दिनों के लिए ही आई तो वो वापस चली गई पर हम दोनों की एस एम एस और फोन पर बातें होती रही। वो जब भी दिल्ली आती तो मुझे मिलती और हम दोनों उसके लिए शॉपिंग करते।

यह सिलसिला लगातार चलता रहा, मैं उसे दिल से प्यार करता था तो मैंने कभी भी उसे पाने की कोशिश नहीं की और उसकी हर जायज- नाजायज मांग को पूरा करता रहा लेकिन उसके इस बर्ताव से अंदर ही अंदर एक असंतोष भी पनपता रहा।

इसी बीच कुछ महीनों पहले मेरी बात संदीप से हुई और उसे मैंने इस सबके बारे में बताया तो संदीप ने साफ़ साफ़ कहा- नीतू से बात कर अकेले में मिलने की ! और उसे सिर्फ आत्मा से ही नहीं शरीर से भी पाने की कोशिश कर ! क्यूँकि लगता है नीतू तुझे इस्तेमाल कर रही है उसके खर्चों को पूरा करने के लिए !

और मुझे संदीप की बात सही भी लगी तो उसके बाद जब नीतू ने शॉपिंग करवाने का कहा तो मैंने उसे कहा- मैं उसे अकेले में मिलना चाहता हूँ, उसे प्यार करना चाहता हूँ !

पर नीतू बोली- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता !

और फिर मैंने उसे कहा- आता हूँ !

पर थोड़ी देर बाद अचानक आई मीटिंग का बहाना बना कर उसे शॉपिंग पर ले जाने से टाल दिया।

इसके बाद और भी दो तीन बार यही हुआ कि मैंने नीतू को इसी तरह से टाल दिया जिससे वो थोड़ी उदास तो हो गई लेकिन संदीप के कहने पर मैं मेरी जिद पर अड़ा ही रहा।

फिर एक दिन नीतू का संदेश आया- क्या हम लॉन्ग ड्राइव पर जा सकते हैं?

और इस बात के लिए ना करने का कोई कारण ही नहीं था तो मैंने तुरंत जवाब दिया- हाँ बिल्कुल !

और फिर जगह तय करके मैं उसे लेने चला गया।

उसे मैंने कनाट प्लेस से शाम के वक्त लिया और उसके बाद हम लोग थोड़ी देर तो ऐसे ही बैठे रहे मानो दो अजनबी एक ही कार में अगल बगल बैठे हों, थोड़ी देर बाद नीतू ने ही पहल की और मेरी जांघ पर हाथ रखते हुए बोली- राज, मुझसे गुस्सा हो क्या तुम?

मैंने कहा- नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है।

तो बोली- फिर मुझसे बात क्यूँ नहीं कर रहे? मुझे कुछ दिनों से इग्नोर भी कर रहे हो।

मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है जान, बस थोड़ा काम ज्यादा है इसलिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था।

इस सारी बात के समय नीतू का दायाँ हाथ मेरी जांघ को सहला रहा था और उससे मेरा लण्ड सख्त होता जा रहा था।

नीतू फिर बोली- मैं भी तुमसे मिलना चाहती थी राज लेकिन बस एक अनजान डर था जो मिलने नहीं दे रहा था।

उसकी इस बात को सुन कर मैंने अपना बांया हाथ नीतू के हाथ पर रख दिया, उसके नाजुक हाथ को सहलाने लगा और सहलाते हुए उसका हाथ अपने सख्त लंड पर रख लिया।

नीतू जैसे मेरी बात समझ गई थी और उसने मेरे पैंट की ज़िप खोल कर मेरे लण्ड को बाहर निकाला और उसे सहलाना शुरू कर दिया।

मैं गाड़ी चला रहा था और नीतू मेरे लण्ड को पकड़ कर मुठ मार रही थी, मुझे ऐसी हालत में यही लग रहा था कि अब अगर मैंने गाड़ी ना रोकी तो कहीं एक्सीडेंट ना हो जाये तो मैंने एक खाली जगह देख कर गाड़ी रोक दी और हैण्ड ब्रेक लगा दिए।

नीतू के हाथों के जादू से मेरा वीर्य भी निकलने ही वाला था तो मैंने नीतू को यही बात बताई और नीतू ने उसका हाथ हटाया और नीचे झुक कर मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया।

वो लण्ड चूस रही थी और मैं दोनों हाथों से उसके सर को सहला रहा था, उसके चूसने में एक अलग ही मजा था जिससे मैं ज्यादा देर टिक नहीं सका और उसने थोड़ी ही देर चूसा होगा कि मेरा वीर्य निकलने लगा।

मैं झटके मार मर के वीर्य उसके मुँह में निकालता रहा और नीतू उस पूरे वीर्य को पीती रही। उसने मेरे लण्ड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे वीर्य की एक एक बूंद को वो चूस नहीं गई।

मैं उस वक्त तो एक बार झड़ चुका था, तुरंत तो कुछ नहीं कर सकता था लेकिन कुछ मिनट बाद करने की हालत में हो ही जाता। इस सब के बाद मैं और जोश में भी आ चुका था और इस बात के लिए आश्वस्त भी हो गया था कि अब तो हमारा मधुर मिलन होकर ही रहेगा।

कुछ मिनट रुक कर मैंने गाड़ी शुरू की आगे जाने के लिए तो नीतू बोली- राज, मुझे वापस छोड़ दो न आज ! देर हो जायेगी, घर भी जाना है और रात में तुम्हारे साथ रुकना मुमकिन नहीं है।

मैंने कहा- ठीक है, जैसा तुम कहो, लेकिन फिर कब मिलोगी?

मैं जवाब के इन्तजार में उतावला हो रहा था, हर सेकंड ऐसे लग रहा था जैसे सदियाँ गुजर रही हों। मैंने कहा- ठीक है जैसा तुम कहो, लेकिन फिर कब मिलोगी? और मैं जवाब के इन्तजार में उतावला हो रहा था, हर सेकंड ऐसे लग रहा था जैसे सदियाँ गुजर रही हों और जैसे ही मैंने जवाब सुना तो मेरी बांछें खिल उठी।

नीतू बोली- मैं कल सुबह तुमसे दस बजे मिलूँगी और शाम तक मैं तुम्हारी ही हूँ।

उसकी बात सुन कर मैंने अगले दिन की पूरी तैयारी कर ली, मेरे दोस्त का एक फार्म हॉउस दिल्ली हरियाणा सीमा पर है तो मैंने अपने दोस्त से उस फार्म हॉउस में सारा इन्तजाम करने को कह दिया और उसकी चाबी सुबह सुबह ही ले ली।

मैंने नीतू को पीतमपुरा मेट्रो स्टेशन के पास ही बुला लिया और वहाँ से उसे कार में लेकर मैं सीधे दोस्त के फार्म हॉउस पहुँच गया।

वो भी पूरे मन से ही आई थी तो पूरी तरह से तैयार होकर खूबसूरत अप्सरा की तरह लग रही थी, माथे पर एक लाल बिंदी, चेहरे पर हल्का मेकअप, खूबसूरत सा कत्थई सलवार सूट जो उसके बदन पर आकर और खूबसूरत हो रहा था और पूरे रास्ते वो मुझे बड़े प्यार से देखते जा रही थी और उसका हाथ मेरी जांघ पर सहला रहा था।

जब हम फार्म हाउस पर पहुँचे तो मेरे कहे अनुसार वहाँ कोई भी नहीं था, मैंने पहले ही खाना और पानी लेकर रख लिया था क्यूँकि फार्म हॉउस पर मैंने ही किसी के भी होने के लिए मना कर दिया था।

हमने खाने के पैकेट और पानी की बोतलें ली और अंदर चले गए। अंदर जाते ही खाना और पानी मैंने मेज पर रखा और नीतू पर टूट पड़ा।

मैंने उसे बाँहों में भरा और भरते ही उसके होंठों को अपने होंठों से लगा कर उसके होंठों को ऐसे पीने लगा जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी मिल गया हो।

मैं उसके होंठों का रसपान कर रहा था और वो भी मेरे होंठो को पूरी तल्लीनता से चूस रही थी।

और फिर मैंने और देर ना करते हुए उसे उठाया और उठा कर मैंने नीतू को सीधे बिस्तर पर लेटा दिया और उसके ऊपर आकर उसके बालों से खेलता हुआ उसके होंठों को फिर से चूमने लगा, उसके बाद उसके उरोजों को सहलाने लगा।

उसके बाद मैंने और देर ना करते हुए सीधे नीतू के कपड़े उतारने पर ध्यान दिया और अगले कुछ पलों में नीतू की कुर्ती और उसकी सलवार जमीन पर पड़ी हुई थी।

नीतू कत्थई रंग की ब्रा और पैंटी में गजब की लग रही थी, उसका गोरा बदन उस रंगीन अंतर्वस्त्र में कयामत ही था।

नीतू की सुंदरता बताने के लिए यही कह सकता हूँ कि वो 5’4″, गोरा बदन, रेशमी बाल, बड़ी बड़ी आँखें प्यारे प्यारे होंठ और एक तीखी सी नाक की मालकिन है, उसके स्तनों का नाप 34 होगा, कमर बहुत पतली नहीं है लेकिन पेट बिल्कुल भी नहीं निकला हुआ है और ऊपर से नीचे तक कयामत ही कयामत है।

अब मेरे लिए और रुकना मुमकिन नहीं था तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपने कपड़े उतारे और नीतू की पैंटी उतार कर उसकी चूत को चाटने लगा। इससे नीतू और ज्यादा उत्तेजित हो गई और उसकी चूत से उसका नमकीन पानी निकलने लगा।

नीतू बोली- राज, अब और मत तड़पाओ, मुझे चोद दो ना !

लेकिन मैं उससे एक बार और लण्ड चुसवाना चाहता था तो मैंने खुद को 69 की स्थिति में किया और नीतू की चूत को चाटने लगा।

मेरी बात समझ कर नीतू भी मेरे लण्ड को चूसने लगी, मैं नीतू को चूस रहा था तभी नीतू की चूत ने पानी छोड़ दिया और नीतू झड़ गई और फिर मुझसे रुकने का कहने लगी।

अभी मैं रुकना नहीं चाहता था तो मैं नीतू के ऊपर से हटा, लण्ड उसकी गीली चूत पर रखा और उसके स्तनों को चूमते हुए एक जोरदार झटका मारा। मेरा आधा लण्ड नीतू की चूत में घुसा दिया,

इस धक्के से नीतू के मुँह से एक चीख निकल गई और मुझसे बोली- राज थोड़ा रुक जाओ !

पर रुकने की बजाय मैंने एक धक्का और उसकी चूत में मारा और मेरा 6 इंच लंबा पूरा लण्ड नीतू की चूत में घुस गया।

इस धक्के से नीतू तड़प सी उठी और मैंने दोनों हाथों से नीतू के स्तन मसलना शुरू कर दिए और धीरे धीरे धक्का लगाना शुरू कर दिया।

थोड़ी देर बाद नीतू भी फिर से तैयार हो गई थी और वो भी मेरा साथ देने लगी।

मैं धक्के लगा रहा था और वो आज ‘राज, ओह राज, जोर से करो, हाँ, और करो’ के नारों से मुझे और उत्साहित करती जा रही थी और मैं उसे जोर जोर से चोदे जा रहा था।, हर धक्के के साथ नीतू चरम पर पहुँच रही थी और मैं मजे के सागर में।

मैं उसे चोद रहा था और मेरे चोदते चोदते ही नीतू पुनः स्खलित हो गई और उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। अब मैं भी ज्यादा देर रुक सकने की हालत में नहीं था तो मैंने नीतू के स्तनों को मसलते हुए कुछ और धक्के लगाए और सारा वीर्य मैंने नीतू की चूत में भर दिया और थक कर नीतू पर ही लेट गया।

उसके बाद हम दोनों ने थोड़ी देर आराम किया और फिर हम दोनों ने बिस्तर पर ही खाना खाया।

उसके बाद मेरा मन फिर से होने लगा था और वही हालत नीतू की भी थी तो हम दोनों फिर से एक दूसरे को चूमने लगे।

इस वक्त तो हम दोनों ने ही कोई कपड़े नहीं पहन रखे थे तो कपड़े उतारने की कोई बात थी ही नहीं।

इस बार जब नीतू फिर से लेटी तो मैंने उसे पलटने को कहा तो मेरी बात समझ कर नीतू बोली- नहीं, मैं इसे पीछे नहीं लूंगी, बहुत दर्द होता है।

पर मैं समझता हूँ जिस मर्द ने औरत की गाण्ड नहीं मारी उसने कुछ नहीं मारा।

तो मैंने उसे बड़े प्यार से समझाया कि कोई दर्द नहीं होगा और हम पूरा मजा करेंगे।

मैंने नीतू के ही पर्स से उसका बॉडी लोशन निकाला और नीतू को पलटने के बाद उसकी गाण्ड और अपने लण्ड पर थोड़ा लोशन लगा लिया और नीतू को घोड़ी बना कर उसकी गाण्ड में लण्ड डालने के लिए तैयार हो गया।

मैंने नीतू के दोनों पुट्ठे पकड़े और उसकी गाण्ड के छेद पर लण्ड रख कर एक झटका मारा और लण्ड का सुपारा उसकी गाण्ड में पहुँचा दिया और जब तक नीतू कुछ कहती, मैंने दो धक्के और मार कर पूरा लण्ड उसकी गाण्ड के अंदर कर दिया और धक्के लगाने लगा।

पहले तो नीतू को दर्द हुआ पर थोड़ी देर बाद नीतू भी इस गाण्ड चुदाई का मजा लेने लगी।

मैं उसे कुतिया बना कर उसकी गाण्ड मार रहा था और वो भी पीछे धक्के लगा रही थी, हर धक्के पर चट चट की आवाज कमरे में फ़ैल रही थी।

मैंने लगभग 15 मिनट उसकी गाण्ड मारी होगी, इस बीच नीतू झड़ चुकी थी और अब मेरे झड़ने की बारी थी।

जब मुझे लगा कि मैं भी झड़ने वाला हूँ तब मैंने नीतू को कस कर पकड़ा और जोर जोर से उसकी गाण्ड मारने लगा और चीखते हुए उसकी गाण्ड में ही झड़ गया।

और इस बार सारा वीर्य मैंने उसकी गाण्ड में भर दिया।

उस दिन हम लोग शाम को 6 बजे तक वहीं रुके और मैंने नीतू को दो बार और चोदा तथा एक बार और उसकी गाण्ड मारी।

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